श्रीनिवास पानूरी के बारे में
Shri Niwas Panuri Biography
- श्रीनिवास पानूरी जीवनी लेखक – प्रदीप कुमार ‘दीपक’ (दु डायर पलाश फूल)
- उपनाम
- बरवाडा के अक्षय बोर
- संस्मरण का लेखक – शान्ति भारत
- आधुनिक खोरठा शिष्ट साहित्य का जनक
- खोरठा भाषा के भीष्म पितामह – विश्वनाथ दसोंधी राज
- खोरठा के वाल्मीकि – पंडित रामदयाल पांडे
- खोरठा के टैगोर – डा. चतुर्भुज साहू
- खोरठा के नागार्जुन – विकल शास्त्री
- बरवाडा के अक्षय बोर
जन्म
- 25 दिसंबर 1920 ,बरवाडा, कल्याणपुर,धनबाद
- 25 दिसंबर – खोरठा दिवस
- शिक्षा- मेट्रिक पास
- पिता का नाम- शालिग्राम पानूरी(मृत्यु – 1939 )
- माता का नाम – दुखनी देवी (मृत्यु – 1944 )
- पत्नी – मूर्ति देवी
- पुत्र – अर्जुन पानूरी
- मृत्यु – 7 अक्टूबर 1986 (पानूरी स्मृति दिवस )
- 1950 -1986 – पानुरी युग
- कृति
- बाल किरण (काव्य/कविता संग्रह- 1954 )
- खोरठा भाषा का पहला कविता संग्रह
- ऑखीक गीत(कविता संग्रह )
- दिव्य ज्योति (कविता संग्रह )
- तीतकी (कविता संकलन)
- मालाक फूल (कविता संग्रह )
- मधुक देशे (प्रणय गीत/कविता संग्रह)
- रामकथामृत (खंडकाव्य),1970 में
- कालिदास का मेघदूत का खोरठा अनुवाद(1968 में प्रकाशित )
- चाबी काठी (नाटक)
- उदभासल कर्ण (पहला नाटक- 1963 में लिखा )
- झींगा फूल
- मातृभाषा (मासिक पत्रिका- 1957 )
- खोरठा (पत्रिका )
- रक्ते रांगल पाँखा
- किसान (कविता )
- सवले बीस (कविता संग्रह )
- युगेक गीता ,1968 में रचना
- साम्यवादी विचारधरा पर आधारित
- कुसमी ,कहानी
- किसान कविता – दु डाहर परास फूल
- बाल किरण (काव्य/कविता संग्रह- 1954 )
- अप्रकाशित पुस्तकें
- पारिजात (काव्य)
- रक्ते भींजल पाँखा
- अपारिजात (काव्य)
- समाधान (खंड काव्य)
- मोहमंग ( काव्य)
- अग्नि परीक्षा (खंड काव्य)
- हमर गांव
- भ्रमरगीत
- युगेक गीता (कम्युनिस्ट मैनिफेस्टो के खोरठा काव्यानुवाद )
- छोटो जी (हास्य व्यंग)
- मेरे गीत
- पत्र -पत्रिका सम्पादन
- मातृभाषा (खोरठा )
- खोरठा
- तितकी
- सम्मान –
- मृत्यु – 7 अक्टूबर 1986
- 1957 में आकाशवाणी रांची की स्थापना की गई
प्रदीप कुमार ‘दीपक’ के बारे में
- जनम – 24 जनवरी 1964
- जनम थान ग्राम – भेंडरा, जिला – बोकारो (झारखण्ड)
- माँयेक नाम – सुमित्रा देवी
- बापेक नाम – फिरंगी विश्वकर्मा
- सिक्छा –
- मेट्रिक 1981 में
- बी०ए० – 1998 में झारखंड कॉलेज, डुमरी से
- पेशा – 1988 से डाकघर सहायक रूपें
- सम्मान – खोरठा रत्न
- विस्थापनेक दर्द, सोसनेक बिरूध आवाज, सामाजिक-राजनीतिक फिंगाठी इनखर गीत-कबिता से झलके हे।
श्री निवास पानुरी जीवनी खोरठा में
झारखंडेक धरती 25 दिसम्बर 1920 ई0 के कधियो नाञ बिसरती काहे कि एहे दिन खोरठाक महाकवि श्रीनिवास पानुरी जीक जनम भेल हलइन । धनबाइदेक करिया कोयलाक बीच पानुरी जी एगो हीरा बइन बहराइला आर चाँतल-चीपल, गँजाइल लोकेक राव बइन, चेतनाक लहर उठाइ, जनभासा खोरठाञ रचना कइर, मानुसेक दिले आलो बारे में सफल भेला।
कहल जा हइन जे पानुरी जीक बाबा (दादा) नवादा जिलाक मँझवे तुंगीक बेलदारी से आइल हला। ओखिन तीन भाइ हला। एक भाइ कतरासें बास करला, बाकी दू भाइ कल्याणपुर, बरवाअड्डाञ बंइस गेला। इनखर बापेक नाम शालीग्राम पानुरी आर माँय दुखनी देवी । इनखर जेठा बिसेसर पानुरीक चाउर-दाइलेक दोकान हलइ। किन्तु इनखर बाप खेती-बारी कर हला। इनखर बड़ भाइकेक नाम राम खेलावन पानुरी आर एगो बहिन सावित्री देवी हली जकर बिहा मनई टाँड़े भेल हलइन ।
1930 ई० लोअर प्राइमरी करल बादें पानुरी जीक सिक्छा जिला स्कुल धनबाइद में परा भेलइन। गरीबक कारन मेटरिक से आगु नाञ पढ़े पारला। किन्तु ताव-लें इनखर भीतरें साहितिक चेठा जाइग गल हलइ। इनखर बिहा मूर्ति देवी संग भेलइन । बापेक मिरतु 4 सितम्बर 1939 सालें भेल । 1944 सालें माँयेक मिरतुक बादें पानुरीजीक धियान आपन रोजी-रोजगार बाटे गेलइ । 1946 इसवीं पानुरी जी पुरना बाजार धनबाइदें एगो पान-गुमटी
खोला। पान कत्था से हाँथ रंगाइ लागलइ आर उनखर कलम से कबिता-कहना कागज रंगाइ लागलइ। लोक पानेक संगे-संग उनखर कबितों के आनन्द उठव-हला।
किन्तु आपन फक्कड़ सभाव के कारने उनखर आरथिक दसा ठीक नाम रह लागइल। पानुरी जी सेसें लिखल हला जे हाम चाकरी नाइ कइर के आइझ पछताइ रहल हों। हित-हामरा बेस सुझाव नाइ देला आर ससुराइर बाट से कोन्हों मदइत नाइ मिलला
किन्तु आरथिक अभावेंक माँझे इनखर लेखनी आर जगमाइ जागलइ। एगो बड़ पइरबार, बेटा भगवानदास, राज किशोर पानुरी, ध्रुव पानुरी, अर्जुन पानुरी (जे एखन खोरठाक सेवाञ लागल हथ) आर अरूण लाल पानुरी। बेटी – निर्मला देवी, रेखा देवी आर आशा देवी, सोभीन के दायित्व उठइते.परों, साहित सेवाञ तनिको कमी नाइ अइलइ।
1950 साल से खोरठाञ गंभीर भइ रचना सुरू करला | 1954 सालें खोरठाक पहिल कबिता संगरह ‘बाल किरिन’ परकासित भेलइन। 1957 सालें खोरठा भासाञ ‘मातृभाषा’ नाम से एगो पतरिकाक परकासन करला आर एहे बछर आकाशवाणी राँची से खोरठाक पहिल कबिताक परकासन भेलइ।
ताव ले पानुरीज नाम चाइरो बाटे पसइर चुकल हलइ। हिन्दीक नामजइजका साहितकार, बुइधजीवी नेता सोभीन इनखर परतिभाक लोहा मान हला। पानुरीजी खोरठा कबिताक पाइ बड़-बड़ कवि सम्मेलने करला जेकर कारन इनखर परिचइ हरिवंश राय बच्चन, राहुल सांकृत्यायन, श्याम नारायण पाण्डेय, बेधड़क बनारसी, रामदयाल पाण्डेय, शिवपूजन सहाय, जानकी बल्लभ शास्त्री, भवानी प्रसाद मिश्र, रामजीवन शर्मा, राधाकृष्ण, वीर भारत तलवार जइसन साहितकार संग भेलइ।
‘राष्ट्रवाणी’ (दैनिक) में उनखर संपादक श्यामकृष्ण बक्सी ‘बाल किरिन’ पर फरनाइ के समीक्षा छापला। महापंडित राहुल सांकृत्यायन उनखा चिट्ठी लिखला – “मातृभाषाओं का अधिकार कोई छीन नहीं सकता, न ही लोक कविता को आगे बढ़ने से कोई रोक सकता है। हाँ, कविता करने में आप साहित्यिक कवियों की कविताओं का अनुकरण हर्गिज न करें। उसके लिए आदर्श है लोककवि और उनकी अछुती भाषा ।’
पानुरी जी मेघदुते काइब के अनुबाइ खोरठात्र कइर गोटे साहित जगतें हलचल मचाइ देला। साहितकार राधाकृष्ण उनखर बिसइयें लिखला – ”छोटानागपुरी भाषाओं में सर्वप्रथम खोरठा भाषा में श्रीनिवास पानुरी ने मेघदूत का अनुवाद करने का श्रेय पाया है। अनुवाद में पानुरी जी ने मुक्त छंद का प्रयोग किया है और वह भी अपने आप में एक नई चीज है। श्री पानुरी जी की तपस्या अनुकरणीय है। उनकी तपस्या के सम्मुख आदर से सिर झुक जाता है।”
डा0 वीर भारत तलवार ‘मेघदूत’ के बारे में लिखला, “कहना न होगा कि श्रीनिवास पानुरी ने मेघदूत को उसकी उचित जमीन पर उतार दिया है। लोक भाषा का सहारा पाकर जनपद की कथा जनपद वासियों तक पहुंच गई है। इस अनुवाद से खोरठा भाषा की भावाव्यक्ति की क्षमता सिद्ध होती है।’ पं0 हंस कुमार तिवारी लिखला – “किसी भी कलावस्तु को एक आकार से दूसरे आकार में ढालना, एक भाषा से दूसरी भाषा में उतारना काठन काम है। फिर मेघदूत का बड़ा ही कठिन परन्तु खोरठा भाषा के कवि पानरी जी ने उसके अनुवाद की स्तुत्य चेष्टा की है। भूल के गाढ़े ऐश्वर्य में सादी छटा देखते ही बनती है। बड़े ही सरल, किन्तु उपयुक्त शब्द, निरलंकार श्रृंगार और सीधा ढंग ।’
महान कवि सह लेखक राम दयाल पाण्डे जी पानुरी जी के चिट्ठी में लिखला “खोरठा नामक जनपदीय भाषा में काव्य निर्माण का काम आप सफलता से कर रहे हैं। आज जो प्रयास प्रारंभिक मालूम पड़ रहा है, वह कभी बहुत विकसित होगा और भारतीय भाषाओं के इतिहास में बहुत महत्वपूर्ण स्थान होगा। मैं इसे वैसा ही प्रयास मानता हूँ जैसा बाल्मिकी ने संस्कृत के लिए अथवा सिद्ध कवियों ने हिन्दी के लिए किया।”
पानुरी जी के सोभीन ‘कविजी’ कइह के डाक-हला। झारखंड आन्दोलनेक जन्मदाता विनोद बिहारी महतो, ए0के0 राय आर ‘कविजी’ में बड़ी हेलमेल रह-हलइ। दूइयो नेता जखन ऊ डहर से पार होतला, ‘कविजी’ के पान गुमटी दू चाइर कबिता बिना सुनल जाइ के नामें नाञ लेतला।
‘कविजी’ जनवादी हला । मानुस के दुःख, दरद, सोसन, सामाजिक कुरीति गुलइन पर दरदराइ के कलम चलइला आर हिआँक मानववादी संसकीरति के जगवे आर जोगवे में सउँसे जीवन समरपित कंइर देला।
‘कम्युनिस्ट घोषणा पत्र’ के जुगेक गीता कइह सँउसे घोषणा पत्र के खोरठा में ‘काव्यानुवाद’ करला। इनखर कबिता से परभाबित भइ के कवियत्री आर मजदूर नेत्री रमणिक गुप्ता धनबादें आपन डेराञ पइत सनिचर के ‘काव्यगोष्ठी’ कर हली, जहाँ ‘कविजी’ के कबिता सुइन के सोभीन झुइम उठ हला।
पानुरी जी आपन साहित जीवनेक 40 बछरें 40 गो खोरठा किताप आर 40 गो हिन्दी कितापेक रचना करला । गरीबी के कधियो आपन साहित रचेक डहरें रोड़ा बइन खड़ा हवे नाञ देला। हामरा आइझो इयाद हे, ई कबिता जे ऊ प्राइ भेण्डरा गाँवें (जहाँ उनखर रिस्तेदार हथ) आइ सुनव हला। हामें तखन छोट गिदर हलों कि “नाच बांदर नाच रे, मोर चाहे बाँच रे।” तखन हामें ई कबिता टा के गिदराली रूपें दोहरव हलों। किन्तु बड़ भेल बादहीं उनखर ई कबिता टाक भाव बुझे पारलों।
पानुरीजक मुइख रचना गुला खाँटे-खुंटे ई रकम हे – ‘बाल किरिन’, ‘तितकी’ (काइब संगरह), ‘मधुक देसें’ (प्रणय गीत), ‘रामकथामृत’ (काव्य एक खंड प्रकाशित), ‘मेघदूत’ (अनुवाद) – प्रकाशित । अप्रकाशित – ‘चाबी-काठी’ (नाटक), ‘आँखीक गीत’ (गीत संग्रह – 1977), ‘पारिजात’ (काव्य), ‘रक्ते भीजल पाँखा’ (कहानी संग्रह), ‘अजनास (नाटक), ‘मोतीक चुर’, ‘अगिन परीखा’ (काव्य), ‘समाधान (हिन्दी खोरठा), ‘मोह भंग’, ‘हमर गाँव’, ‘भ्रमर गीत’, ‘उदवासल कर्ण’ (नाटक), ‘जुगेक गीता’ (अनुवाद), ‘अपराजित’ (काव्य संग्रह), ‘जाँ मेरे गीत’, ‘छोटो जी’ (हास्य व्यंग्य), वामपंथी भावना। ।
पानुरी जी राँची विश्वविद्यालय सिलेबस बोर्ड के सदइस हला। संगे-संगे जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा विभागेक संपादक मंडल उनखा आजीवन सदइस रूपें सामिल करले रहथ ।
7 अक्टूबर 1986 सालें अचक्के हिरदय गति रूकेक कारन उनखर मिरतु भइ गेलइ। किन्तु उनखर रचना आर नाम सदाइ अमर रहथ। जे डहरें पानुरी जी एकाञ रहल-चलल हला, आइझ ऊ डहरें हामिन सैकड़ों खोरठा लेखक, कबि आर साहितकार चइल रहल ही। जखन-जखन खोरठा साहित के चरचा हतइ, पानुरी जीक नाँव मन जरूर पतर आर बेंडाइल-बेंड़ाइल साहितकार सब के ध्रुवतारा बइन आइझो डहर देखाइ रहल हथ आर माननवादी बिचार धाराञ चलेक प्रेरणा दइ रहल हथ।
Previous Years Questions Related to श्रीनिवास पानुरी
- Q. ‘आइज नाज तो काइल, हमर बात माने हतो, गोड़ेक कांटा मुँहे धइर टाने हतो।’ ई केकर कथन हे? श्रीनिवास पानुरी
- Q.ईकर में कोन काइब टा श्रीनिवास पानुरी के लागय? दिव्य ज्योति
- Q.मातृभासा और खोरठा पत्रिका का छपाई कौन से प्रेस से हुआ था ? आवाज प्रेस
- Q.मातृभासा पत्रिका का छपाई कौन वर्ष हुआ था ? जनवरी 1957
- Q. श्रीनिवास पानुरी कर अनुदित काइब के नाम बतावा? मेघदुत
- Q.श्रीनिवास पानुरी कर पहिल एकल खोरठा छपल संकलन बतावा ? “बाल-किरन’
- Q. निबंध ‘खोरठा साहितेक धरती’ कर निबंधकार लागथ? श्रीनिवास पानुरी
- Q.खंड काव्य ‘समाधान’ कर रचनाकार के लागथ? श्रीनिवास पानुरी
- Q. ‘रकते राँगल पाँखा’ केकर रचना लागय ? श्रीनिवास पानुरी
- Q. बोरवा अड्डाक अखर बोर सिरसक संस्मरण केकर उपर लिखल गेल हे? श्रीनिवास पानुरी
- Q.हमनी सब एक सिरसक कविता के कवि हथ ? श्रीनिवास पानुरी
- Q. पानुरी जीक जनम कोन साल भेल रहय ? 1920
- Q.खोरठाँज “मेघदूत कर अनुवाद के करले हथ ? श्री निवास पानुरी
- Q.खोरठाँज “मेघदूत कर अनुवाद के कौन बछर हथ ? 1950 (प्रकाशित – 1968 )
- Q. ‘रामकथाअमृत ” काइब कर मूल रचनाकार के हथ ? श्री निवास पानुरी
- Q. ‘मेघदूत” काइब कर मूल रचनाकार के हथ ? कालिदास
- Q. ‘उद्वासल कर्न’ नाटक जे पानुरी जी कर परमुख रचना हय, कर्न कोन महाकाइब के पात्र हय ? महाभारत
- Q. ‘उदवासल कर्न के माने की हवे हय? उपेक्षित कर्न
- Q. कविता संगरह “बाल-किरन’ केकर रचना लागय? श्री निवास पानुरी
- Q.खोरठाक भासाक बाल्मिकी केकरा कहल गेल हे? श्री निवास पानुरी
- Q.श्री निवास पानुरीक “खोरठाक भासाक बाल्मिकी” के कहल हे? पंडित रामदयाल पांडे
Q. कोन रचना टा श्रीनिवास पानुरी के नाँज हकइ?
- (a) चाभी-काठी
- (b) मेघदूत
- (c) आखिक गीत
- (d) शिव सागर – दलेल सिंह
Q. ईकर में कोन जोड़ा सही नाय हय? ।
- (a) मुघदूत – श्रीनिवास पानुरी
- (b) मेकामेकी न मेटमाट – डॉ. ए. के. झा ।
- (c) चाभी-काठी – श्रीनिवास पानुरी
- (d) उदवासल कर्न – डॉ. बिनोद कुमार
Q. सही जोड़ा के छांटा
- (a) मेघदूत-पानुरी
- (b) सइर सगरठ – डॉ.ए.के. झा
- (c) अजगर-दसोन्धी
- (d) सभे