प्राचीन भारतीय इतिहास के स्रोत
- इतिहास अतीत में किये गए मानव-प्रयास की आनुक्रमिक कथा है।
- वो सभी घटनाए जो संपन्न हो चुकी इतिहास का विषय है।
- इतिहास हमारी और हमारे समाज की दशा व दिशा का निर्धारण करता है और भविष्य को सुरक्षित बनाने का प्रयास करता है।
प्राचीन भारतीय इतिहास जानने के स्रोत
- साहित्यिक स्रोत
- पुरातात्विक स्रोत
अभिलेख
- महत्त्वपूर्ण लेख, दस्तावेज़, रिकार्ड।
- पाषाण शिलाओं(चटटान/पत्थर) ,स्तंभों, ताम्रपत्रों, दीवारों तथा प्रतिमाओं पर उत्कीर्ण लिखावट को अभिलेख कहते हैं।
- सबसे प्राचीन अभिलेखों में मध्य एशिया के बोगजकोई से प्राप्त अभिलेख हैं।
- इस पर वैदिक देवता के नाम मिलते हैं। इनसे ऋग्वेद की तिथि ज्ञात करने में मदद मिलती है।
- भारत में सबसे प्राचीन अभिलेख अशोक के हैं जो 300 ई. पू. के लगभग हैं।
- अशोक के अभिलेख ब्राह्मी, खरोष्ठी, यूनानी तथा अरमाइक लिपियों में मिले हैं।
- सर्वप्रथम 1837 ई. में जेम्स प्रिंसेप ने ब्राह्मी लिपि में लिखित अशोक के अभिलेख को पढ़ा था।
- इनसे संबंधित शासकों के बारे में महत्त्वपूर्ण जानकारी मिलती हैं, जिनमें प्रमुख हैं
स्मारक और भवन
- हड़प्पा और मोहनजोदड़ो की खुदाई से प्राप्त भवनों से 8,000 वर्ष पुरानी सैंधव सभ्यता का पता चला है।
- अतरंजीखेड़ा (अतरंजीखेड़ा गंगा की एक सहायक कली नदी के तट पर )आदि की खुदाई से पता चलता है कि देश में लोहे का प्रयोग ईसा पूर्व 1000 के लगभग प्रारंभ हो गया था।
- महलों और मंदिरों की शैली से वास्तुकला के बारे में पता चलताहै।
- भारत के अतिरिक्त अन्य देशो में भी हिंदू संस्कृति से संबंधित स्मारक मिलते हैं।
सिक्के (Coin)
- प्राचीन राजाओं द्वारा ढलवाए गए सिक्कों से भी ऐतिहासिक जानकारी मिलती है।
- धातु के टुकड़ों पर औजारों से प्रहार कर आकृतियां बनाई जाती थीं। इस तरह के सिक्के आहत सिक्के कहलाए।
- मुद्राओं में तिथियाँ भी खुदी होती हैं जो कालक्रम निर्धारण में सहायक हैं।
- पुराने सिक्के तांबा, चांदी, सोना और सीसा धातु के बनते थे।
- प्राचीनतम सिक्कों को ‘आहत सिक्के‘ कहा जाता है।
- आहत सिक्के या पंचमार्क सिक्के ई. पू. पाँचवीं सदी के हैं।
- सर्वाधिक सिक्के मौर्योत्तर काल में बने हैं, जो मुख्यतः सीसे, चांदी, तांबा एवं सोने के हैं।
- सातवाहनों ने सीसे तथा गुप्त शासकों ने सोने के सर्वाधिक सिक्के जारी किये।
- सर्वप्रथम सिक्कों पर लेख लिखने का कार्य यवन शासकों ने किया।
- सिक्कों के अध्ययन को ‘Numismatics’ कहा जाता है।
मूर्ति (sculptures)
- प्राचीन भारत में मूर्तियों का निर्माण कुषाण काल से आरंभ होता है।
- कुषाणकालीन मूर्तियों पर वैदेशिक प्रभाव है, जबकि मथुरा कला पूर्णतः स्वदेशी है।
चित्रकला(painting)
- बोधिसत्व पद्मपाणि का चित्रअजंता में है।
मुहरें (stamp/seal)
- मुहरों से भी प्राचीन भारत का इतिहास जानने में सहायता मिलती है।
- मुहरों से व्यापारिक, धार्मिक, आर्थिक जीवन के बारे में जानकारी प्राप्त होती है।
साहित्यिक स्रोत
- धार्मिक साहित्य – धर्म से सम्बंधित
- लौकिक साहित्य – धर्म के अलावा लोकजीवन से सम्बंधित
धार्मिक साहित्य
- ब्राह्मण ग्रंथ -वेद, उपवेद ,ब्राह्मण ग्रन्थ ,आरण्यक ,उपनिषद,वेदांग ,महाकव्य, पुराण,षड्दर्शन , तथा स्मृति ग्रंथ
- ब्राह्मणेत्तर ग्रंथ – बौद्ध तथा जैन साहित्य
लौकिक साहित्य
- ऐतिहासिक ग्रंथों, जीवनियाँ, यात्रा-वृत्तांत, कल्पना-प्रधान तथा गल्प साहित्य
वैदिक संहिता
- वेद संस्कृत के विद शब्द से बना है जिसका अर्थ है- क्रमबद्ध ज्ञान होना
- वेदों का तात्पर्य है- ज्ञान
- यह पद्य में लिखे गए हैं कुछ अंश गद्य में भी है
- यह पद्य ऋचा या युग कहलाते हैं गद्य को यजुष कहते हैं
- वैदिक मंत्रों के संकलन को संहिता कहते हैं
- महान मुनि वेदव्यास ने इनका संकलन चार भागों में किया है- ऋग्वेद यजुर्वेद सामवेद अथर्ववेद
- वेदों के द्वारा प्राचीन आर्यों के जीवन के बारे में जानकारी मिलती है।
- वैदिक युग की ज्ञान का एकमात्र स्रोत वेद है।
- वेदों की संख्या चार है- ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद तथा अथर्ववेद।
ऋग्वेद
- यह सबसे प्राचीनतम वेद माना जाता है।
- यह एक ऐसा वेद है जो ऋचाओं में बद्ध है।
- ऋग्वेद में कुल 10 मंडल, 1028 सूक्त एवं 10,580 ऋचाएँ हैं।
- इस वेद के पढ़ने वाले ऋषि को ‘होतृ’ कहते हैं।
- ऋग्वेद का पहला एवं 10वाँ मंडल सबसे अंत में जोड़ा गया है।
- ऋग्वेद के तीसरे मंडल में सूर्य देवता ‘सविता’ को समर्पित गायत्री मंत्र है।
- ऋग्वेद के 9वें मंडल में सोम देवता का उल्लेख है तथा 10वाँ मंडल चार्तुवर्ण्य समाज की संकल्पना का आधार है।
- प्रत्येक वेदों का 1-1 उपवेद है इस तरह से कुल 4 उपवेद है ,ऋग्वेद का एकमात्र उपवेद आयुर्वेद है.आयुर्वेद के कर्ता धन्वंतरि हैं
- ऋग्वेद के दो ब्राह्मण ग्रंथ हैं
- ऐतरेय
- कौषितकी अथवा शंखायन।
नोट: संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन (यूनेस्को) द्वारा ‘ऋग्वेद’ को विश्व मानव धरोहर के साहित्य में शामिल किया गया है।
यजुर्वेद
- इसमें यज्ञों के नियमों या विधानों का वर्णन मिलता है।
- इसे कर्मकांडीय वेद भी कहा जाता है।
- यजुर्वेद पद्य एवं गद्य दोनों में है।
- यजुर्वेद के दो भाग हैं-शुक्ल यजुर्वेद और कृष्ण यजुर्वेद।
- शुक्ल यजुर्वेदकेवल पद्य में है जबकि कृष्ण यजुर्वेद, गद्य एवं पद्म दोनों में है।
- यजुर्वेद के मंत्रों का उच्चारण करने वाला पुरोहित ‘अध्वर्यु’ कहलाता है।
- यजुर्वेद के प्रमुख उपनिषद
- कठोपनिषद, इशोपनिषद, श्वेताश्वरोपनिषद तथा मैत्रायणी उपनिषद हैं।
- यजुर्वेद का अंतिम अध्याय ईशावास्य उपनिषद है, जिसका संबंध आध्यात्मिक चिंतन से है।
- यजुर्वेद के दो ब्राह्मण ग्रंथ हैं-शतपथ एवं तैत्तरीय ब्राह्मण ग्रंथ
- यजुर्वेद का एकमात्र उपवेद धनुर्वेद है.धनुर्वेद के कर्ता विश्वामित्र हैं.
सामवेद
- ‘साम’ का अर्थ ‘गान’ होता है।
- इसमें यज्ञों के अवसर पर गाए जाने वाले मंत्रों का संग्रह है।
- इसे भारतीय संगीत का जनक कहा जाता है।
- सात स्वरों (सा, रे, ग, म, प, ध, नि) की उत्पत्ति इसी से हुई।
- सामवेद में कुल 1875 ऋचाएँ हैं।
- सामवेद के मंत्रों को गाने वाला ‘उद्गाता’ कहलाता है।
- सामवेद के प्रमुख उपनिषद– छांदोग्य तथा जैमिनीय हैं।
- सामवेद का ब्राह्मण ग्रंथ– पंचविश ब्राह्मण, षडविश ब्राह्मण है।
- सामवेद का एकमात्र उपवेद गंधर्ववेद है.गंधर्ववेद के कर्ता नारद मुनि है.
अथर्ववेद
- इसकी रचना अथर्व तथा अंगिरस ऋषि द्वारा सभी ग्रंथों के बाद में की गई।
- इसे ‘अथर्वांगिरस वेद’ भी कहा जाता है।
- इसमें 731 सूक्त, 20 अध्याय तथा लगभग 6000 मंत्र हैं।
- इसमें ब्रह्म ज्ञान, धर्म, समाजनिष्ठा, औषधि प्रयोग, रोग निवारण, जादू-टोना, तंत्र-मंत्र आदि अनेक विषयों का वर्णन है।
- अथर्ववेद का एकमात्र ब्राह्मण ग्रंथ ‘गोपथ‘ है।
- अथर्ववेद के उपनिषद – मुंडकोपनिषद, प्रश्नोपनिषद तथा मांडूक्योपनिषद।
- मुंडकोपनिषद से ही भारत का राष्ट्रीय आदर्श वाक्य ‘सत्यमेव जयते’ लिया गया है।
- इसमें सभा और समिति को प्रजापति की दो पुत्रियाँ कहा गया है।
- अथर्ववेद का एकमात्र उपवेद स्थापत्य वेद है.स्थापत्य वेद के कर्ता बिस्वकर्मा है.
- नोट: इन चार वेदों को ‘संहिता’ कहा जाता है।
ब्राह्मण, आरण्यक तथा उपनिषद
- ‘संहिता’ के पश्चात् ब्राह्मण, आरण्यक तथा उपनिषद का स्थान है।
- इनसे उत्तर वैदिककालीन समाज तथा संस्कृति के विषय में महत्त्वपूर्ण जानकारी प्राप्त होती है।
ब्राह्मण ग्रंथ
- वैदिक संहिताओं की व्याख्या के लिये गद्य में लिखे गए हैं। यह वे टीकाएँ हैं जो कि वेद मंत्रों की व्याख्या करते हैं
- प्रत्येक वैदिक संहिता के लिये अलग-अलग ब्राह्मण ग्रंथ लिखे गए हैं.
आरण्यक
- इन ग्रंथों का अध्ययन एकांत वनों में किया गया था
- इनमें आत्मा मृत्यु और जीवन जैसे अनेक महत्वपूर्ण विषयों पर चर्चा की गई है
- वर्तमान में 7 प्रमुख आरण्यक उपलब्ध है
उपनिषद
- ब्राह्मण ग्रंथों के भाग उपनिषद कहलाते हैं
- उपनिषद का अर्थ – निकट बैठना
- इनकी संख्या लगभग 108 है, किन्तु मुख्य उपनिषद 13 हैं। हर एक उपनिषद किसी न किसी वेद से जुड़ा हुआ है।
- उपनिषद में ही कार्य तथा फल का सिद्धांत निश्चित किया गया है-
- मनुष्य जैसा कर्म करेगा उसे वैसा ही फल भुगतना पड़ेगा
- मनुष्य का मुख्य उद्देश्य मोक्ष प्राप्त करना है
- मुंडकोपनिषद से ही भारत का राष्ट्रीय आदर्श वाक्य ‘सत्यमेव जयते’ लिया गया है।
- कठोपनिषद् में वाजश्रवा के पुत्र नचिकेता और यम के बीच हुए संवाद का सुप्रसिद्ध उपाख्यान है।
वेदांग तथा सूत्र
- ये वेदों के शुद्ध उच्चारण करने में सहायक थे।
- वेदों को भली-भाँति समझने के लिये छः वेदांगों की रचना की गई
- शिक्षा (उच्चारण विधि)
- ज्योतिष (भाग्यफल)
- कल्प (कर्मकाण्ड)
- व्याकरण (शब्द व्युत्पत्ति)
- निरुक्त (भाषा विज्ञान)
- इसकी रचना आचार्य यास्क ने की
- छंद (चतुष्पदी श्लोक)
- छंद की रचना शेषनाग ने की
- छंद को पिंगल शास्त्र भी कहते हैं
- छंद दो प्रकार के हैं – लौकिक और अलौकिक
सूत्र साहित्य
- इसमें वैदिक यज्ञ के विधि विधान का वर्णन है
- श्रौत सूत्र,धर्मसूत्र,शुल्वसूत्र,गृह्य सूत्र
- गृह्य सूत्र
- इसमें जन्म से लेकर मृत्यु तक मनुष्य के कर्तव्यों का वर्णन है
- इसमें आठ प्रकार के विवाह पद्धति दी गई है
ब्रह्म, देव, आर्ष ,प्रजापत्य, असुर ,गंधर्व, राक्षस तथा पैसाच
महाकाव्य
- रामायण (आदिकाव्य)है जिसकी रचना महर्षि वाल्मीकि ने की थी। इससे हमें हिन्दुओं तथा यवनों और शकों के संघर्ष का वर्णन मिलता है।
- महाभारत(जयसंहिता ) की रचना वेदव्यास ने की थी। इससे प्राचीन भारतवर्ष की सामाजिक, धार्मिक तथा राजनीतिक दशा का वर्णन मिलता है।
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पुराण
- पुराणों की संख्या 18 है।
- पुराणों के रचयिता एवं संकलनकर्ता लोमहर्ष तथा उनके पुत्र उग्रश्रवा को माना जाता है।
- सबसे प्राचीन पुराण मत्स्यपुराण है।
- पुराण प्राचीन काल से लेकर गुप्त काल तक की ऐतिहासिक घटनाओं का परिचय कराते हैं।
दर्शन
बौद्ध साहित्य
- बौद्ध साहित्य में ‘त्रिपिटक’ सबसे महत्त्वपूर्ण है।
- ‘त्रिपिटक’ बुद्ध की शिक्षाओं का संकलन है। इसे तीन भागों में विभाजित किया गया है-
- बौद्ध ग्रंथ पालि भाषा में लिखे गए।
- बौद्ध ग्रंथों से संबंधित जातकों में बुद्ध से संबंधित घटनाओं का वर्णन है।
- ‘दीपवंश’ तथा ‘महावंश‘ नामक पालि ग्रंथों से मौर्यकालीन इतिहास के विषय में जानकारी मिलती है।
- नागसेन द्वारा रचित ‘मिलिंदपन्हो‘ पालि भाषा में रचित ग्रंथ में हिन्द-यवन शासक मिनाण्डर के विषय में सूचनाएँ मिलती है।
- बौद्ध धर्म के हीनयान संप्रदाय का प्रमुख ग्रंथ ‘कथावस्तु‘ है जिसमें महात्मा बुद्ध का जीवनचरित वर्णित है।
- महायान संप्रदाय के ग्रंथ ‘ललितविस्तर’, ‘दिव्यावदान‘ आदि हैं।
- ललितविस्तर- बुद्ध को देवता मानकर उनके जीवन तथा कार्यों का वर्णन
- दिव्यावदान- अशोक से लेकर पुष्यमित्र शुंग तक के शासकों का वर्णन
जैन साहित्य
- जैन साहित्य को ‘आगम‘ कहा जाता है।
- जैन ग्रंथों में परिशिष्टपर्वन, भद्रबाहुचरित, आचरांगसूत्र, भगवतीसूत्र, कालिका पुराण आदि प्रमुख हैं।
- जैन धर्म का साहित्य ‘कल्पसूत्र‘ की रचना भद्रबाहु ने की थी।
लौकिक साहित्य
विदेशी साहित्य (विदेशी यात्रियों के विवरण)
- यूनान एवं रोम के लेखक
- चीनी यात्रियों के विवरण
- अरब यात्रियों के विवरण
यूनान एवं रोम के लेखक
- टेसियस– ईरान का राजवैद्य था।
- हेरोडोटस ‘हेरोडोटस’ को ‘इतिहास का पिता’ कहा जाता है। उसने ‘हिस्टोरिका’ की रचना की थी।
- सिकंदर के साथ आने वाले लेखक थे- नियार्कस, ऑनेसिक्रिटस और अरिस्टोबुलस।
- मेगस्थनीज ने ‘इंडिका‘ की रचना की, जो सेल्यूकस निकेटर का राजदूत था।
- मेगस्थनीज ने ‘इंडिका’ में मौर्ययुगीन समाज एवं संस्कृति के विषय में लिखा है।
- डाइमेकस– यह सीरियन नरेश अंत्तियोकस का राजदूत था। यह बिंदुसार के राजदरबार में आया था।
- डायोनिसियस– यह मिस्त्र नरेश टॉलेमी फिलाडेल्फस का राजदूत था, जो बिंदुसार (अन्य स्रोतों में अशोक भी पढ़ने में मिलता है) के राजदरबार में आया था।
- प्लिनी(रोम )– इसने पहली सदी में ‘नेचुरल हिस्ट्री‘ नामक पुस्तक लिखी
- टॉलेमीकी पुस्तक ‘ज्योग्राफी‘
- अज्ञात लेखक की पुस्तक ‘पेरिप्लस ऑफ द एरिथ्रियन सी’
चीनी यात्रियों के विवरण
- ये चीनी यात्री बौद्ध मतानुयायी थे
अरब यात्रियों के विवरण
अलबरूनी
- यह 11वीं सदी में महमूद गज़नवी के साथ ख्वारिज्म(उज्बेक )से भारत आया था।
- उसकी लिखी कृति ‘तहकीक-ए-हिंद’ ‘किताबुल हिंद’ (भारत की खोज)अरबी में है।
- एडवर्ड साची ने 1888 ई. में अरबी भाषा से ‘तहकीक-ए-हिंद’ का अनुवाद अंग्रेजी भाषा में किया।
- अरबी लेखकों में अलबरूनी के अतिरिक्त
- अल-बिलादुरी, सुलेमान, हसन निज़ाम, फरिश्ता, निजामुद्दीन, इब्नबतूता आदि भी प्रमुख हैं।
इब्नबतूता
- यह मोरक्को से भारत मुहम्मद बिन तुगलक के शासन में आया था
- इसके द्वारा लिखा गया यात्रा-वृत्तांत ‘रेहला’ है, जो अरबी भाषा में है।
- सुल्तान मुहम्मद बिन तुगलक ने उसे दिल्ली में काजी के पद पर नियुक्त किया। बाद में उसे अपना राजदूत बनाकर चीन भेजा।