कलारिपयट्टू युद्धकला
- कलारिपयट्टू दो शब्दों ‘कलारि’ और ‘पयटटू ‘ के मेल से बना है- जिसका शाब्दिक अर्थ युद्ध की कला का अभ्यास होता है।
- प्राचीन समय में यह युद्ध शैली अगस्त्य ऋषि एवं भगवान परशुराम द्वारा सिखाई जाती थी।
- इस युद्धकला का वेदों में भी वर्णन मिलता है।
- प्राचीन काल में 7 वर्ष से ऊपर के आयु वर्ग के बच्चों को इसका प्रशिक्षण दिया जाता था ।
- कलारिपयटू का उल्लेख संगम साहित्य में भी मिलता है।
- कुछ लोग इसकी उत्पत्ति स्थल केरल को मानते हैं, जबकि कुछ पूरे दक्षिण भारत को इसके उत्पत्ति स्थल के रूप में स्वीकार करते हैं।
- केरल के मार्शल आर्ट कलारिपयट्टू हैं।
- कलारिपयट्टू को विश्व में मार्शल आर्ट का सर्वाधिक प्राचीन और सबसे वैज्ञानिक रूप माना जाता है।
- लड़ाई का प्रशिक्षण ‘कलारि याती’ नामक स्कूल में दिया जाता है।
- कलारि के नियमों के तहत मार्शल आर्ट के प्रशिक्षण की शुरुआत शरीर की तेल-मालिश से की जाती है जो देह को फुर्तीला और लचीला बनाती है।
- इसके बाद चाट्टोम (कूद), ओट्टम (दौड़), मरिचिल (कलाबाज़ी) आदि करतब सिखाए जाते हैं, जिसके बाद कटार, तलवार, भाला, गदा, धनुष-बाण जैसे हथियार चलाने की विद्या सिखाई जाती है।
- भारत में युद्धकला, योग एवं नृत्य का करीबी रिश्ता माना जाता रहा है।
सिलांबम युद्धकला
- यह तमिलनाडु की प्रचलित युद्धकला है।
- प्राचीन काल में सिलांबम एक प्रकार की आयुध कला थी।
- पांड्य शासकों ने इस कला को प्रश्रय दिया। इसका उल्लेख तमिल ग्रंथ शिलप्पादिकारम् में मिलता है।
- इसमें मुख्यतः लाठियों का प्रयोग होता है और कभी-कभी दूसरे प्रकार के अस्त्रों, जैसे- हिरण के सींगों का भी इस्तेमाल किया जाता है।
- इसे मिट्टी के मैदान में खेला जाता है।
- जब इसे बिना शस्त्रों के खेलते हैं तो इसे ‘कुटु वरिसई’कहा जाता है।
- तमिलनाडु की एक और युद्धकला का नाम‘वरमा कलाई’है और इसे कुटु वरिसई का ही आवश्यक अंग माना जाता है।
मर्दानी खेल युद्धकला
- मर्दानी महाराष्ट्र का परंपरागत युद्ध कौशल है ।
- इसका अभ्यास मुख्यतः महाराष्ट्र के कोल्हापुर में किया जाता है।
- यह युद्धकला मुख्यत: तलवारों पर केंद्रित है, किंतु इसमें लाठी-काठी, तलवार-ढाल, दाँड-पट्टा आदि हथियारों का भी इस्तेमाल शामिल है।
थांग-टा युद्धकला और सारित-साराक युद्धकला
- ये मणिपुर की प्राचीन युद्धकलाएँ हैं।
- इनमें दो या दो से अधिक खिलाड़ी होते हैं और वे तलवार का इस्तेमाल करते हैं।
- मणिपुरी भाषा में ‘थांग’ का आशय तलवार से और ‘टा’ का आशय बरछी से है।
- सारित-साराक और थांग-टा में अंतर यह है कि थांग-टा में हथियारों का प्रयोग आवश्यक है, जबकि सारित-साराक में हथियारों का प्रयोग नहीं होता।
- मणिपुर की थांग-टा युद्धकला मणिपुर की अति प्राचीन मार्शल आर्ट ‘हुएन लाल्लोंग’ का ही रूप है तथा इसका प्रचलन मणिपुर के मैती समुदाय में ज़्यादा है।
ठोडा युद्धकला
- यह हिमाचल प्रदेश की युद्धकला है जिसका उद्गम कुल्लू में हुआ है।
- इसमें धनुष-बाण का प्रयोग होता है।
- बैसाखी और अन्य शुभ अवसरों पर होने वाले इस कौशल प्रदर्शन में दो दल भाग लेते हैं, जिसमें एक को ‘पाशी’ और दूसरे को ‘साथी’ कहा जाता है।
- इसमें भाग लेने वाले प्रतिभागी एक विशेष प्रकार की सफेद पोशाक धारण करते हैं।
मुष्टि युद्धकला
- संस्कृत शब्द ‘मुष्टि’ का शाब्दिक अर्थ ‘मुट्ठी’ है।
- इस युद्धकला में मुट्ठी के प्रहार से युद्ध किया जाता है।
- योद्धा अपनी सुरक्षा के लिये कोई उपकरण नहीं पहनते हैं।
- ऐसा माना जाता है कि उत्तर प्रदेश के वाराणसी में तीसरी सदी के दौरान इस युद्धकला का विकास हुआ।
- मुष्टि युद्धकला दक्षिण एशिया की मुक्केबाज़ी कला का एक पारंपरिक रूप है।
पारीकदा युद्धकला
- पश्चिम बंगाल और बिहार में प्रचलित इस युद्धकला में तलवार और ढाल का प्रयोग होता है।
कथी सामू युद्धकला
- कथी सामू आंध्र प्रदेश का एक प्राचीन युद्धकला कौशल है।
- इस युद्धकला में तलवार-ढाल का इस्तेमाल होता है।
- जिस स्थान पर इसका अभ्यास किया जाता है, उसे गरीदी कहते हैं।
गतका युद्धकला
- गतका पंजाब के निहंग समुदाय के बीच प्रसिद्ध युद्ध कौशल है।
छीबी गद-गा युद्धकला
- यह मणिपुर की प्राचीन युद्धकला है।
- इसमें तलवार और ढाल प्रयुक्त होते थे, जो अब लाठी एवं चमड़े के ढाल के रूप में परिवर्तित हो गए हैं।
- इसमें छीबी यानी तलवार की लंबाई दो से ढाई फीट तक और ढाल का व्यास करीब एक मीटर तक होता है।
पाईका अखाड़ा युद्धकला
- इस युद्धकला का प्रचलन ओडिशा में है।
युवा कार्यक्रम एवं खेल मंत्रालय
- वर्ष 1982 में इसकी स्थापना खेल विभाग के रूप में की गई थी।
- 1985 में विभाग का नाम बदलकर युवा कार्यक्रम एवं खेल कल्याण विभाग कर दिया गया।
- 27 मई, 2000 को इसे स्वतंत्र मंत्रालय के रूप में घोषित दिया गया।
- बाद में इस मंत्रालय को दो विभागों – युवा कार्यक्रम विभाग तथा खेल विभाग, में बाँट दिया गया
- युवा कार्यक्रम एवं खेल मंत्रालय 30 अप्रैल, 2008 से अस्तित्व में आए।
भारतीय खेल प्राधिकरण
- यह युवा कार्यक्रम एवं खेल मंत्रालय का एक विभाग है।
राष्ट्रीय स्तर के खेल संस्थान
सरकार द्वारा स्थापित खेल पुरस्कार
राजीव गांधी खेल रत्न
- यह पुरस्कार खेल में अद्वितीय प्रतिभा दिखाने वाले खिलाड़ी को दिया जाता है।
- यह खेल जगत में प्रदान किया जाने वाला सर्वोच्च सम्मान है।
- इसे 1991-92 के दौरान शुरू किया गया।
- किसी खिलाड़ी द्वारा पिछले 4 वर्ष के उत्कृष्ट प्रदर्शन के आधार पर यह पुरस्कार प्रतिवर्ष प्रदान किया जाता है।
द्रोणाचार्य पुरस्कार
- यह पुरस्कार उन प्रशिक्षकों तथा कोच को दिया जाता है।
अर्जुन पुरस्कार
- यह पुरस्कार उस खिलाड़ी को दिया जाता है, जो लगातार चार वर्षो तक अंतर्राष्टीय स्तर पर शानदार प्रदर्शन कर रहा हो ।
ध्यानचंद लाइफ टाइम अचीवमेंट पुरस्कार
- यह पुरस्कार उन खिलाड़ियों को दिया जाता है, जिन्होंने खेल के लिये अमूल्य योगदान दिया हो तथा लगातार उसमें सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन कर रहे हों।
- इसके लिये उन खिलाड़ियों का भी चयन किया जाता है, जिन्होंने खेल से भले ही संन्यास ले लिया हो, लेकिन वे खेल के प्रोत्साहन के लिये भी कार्यरत हों।
मौलाना अबुल कलाम आज़ाद ट्रॉफी
- यह ट्रॉफी विश्वविद्यालयों को दिया जाने वाला पुरस्कार है।
भारतीय परंपरागत खेलों का परिचय
शतरंज
- शतरंज का खेल भारत में ही उत्पन्न हुआ।
- किवदंती के अनुसार
- शतरंज का आविष्कार रावण की पत्नी मंदोदरी ने किया था।
- महाभारत में भी ‘चतुरंगिणी सेना’ और ‘चतुरंग’ का उल्लेख मिलता है। ‘चतुरंगिणी सेना’ का व्यूह रचना हाथी, घोडे, पैदल सैनिक, सेनापति और राजा से मिलकर बनती थी।
- अमरकोश के अनुसार, ‘चतुरंगिणी’ शतरंज का ही प्राचीन नाम था जो कालांतर में चतुरंग और चतुरांग हो गया।
- माना जाता है कि छठी शताब्दी में अरबी-फारसी के संपर्क में आने पर इसे ही शतरंज कहा जाने लगा।
- शतरंज का खेल भारत से अरब और ईरान होते हुए यूरोप गया।
- वहाँ इसे ‘चेस’ कहा जाने लगा।
- शतरंज दो खिलाड़ियों के बीच खेला जाने वाला खेल है जिसे एक बोर्ड पर खेला जाता है जिस पर कुल 64 चौरस खाने होते हैं।
- इनमें से 32 चौकोर खाने काले (या अन्य किसी गहरे रंग के) और 32 चौकोर खाने सफेद (या अन्य किसी हल्के रंग के) होते हैं।
- प्रत्येक खिलाड़ी के पास 16-16 चौरस और 16-16 मोहरे होते हैं।
शतरंज के प्रमुख खिलाड़ी
- प्रमुख भारतीय खिलाड़ी
- पाँच बार विश्व चैंपियन रहे विश्वनाथन आनंद ,मीर सुल्तान खान, कोनेरू हम्पी, विजयालक्ष्मी सुब्बारमन, तानिया सचदेव, दिव्येंदु बरुआ, प्रवीण थिप्से, संदीपन चंदा, श्रीनाथ नारायणन, पी. हरिकृष्णन, आरती रमास्वामी इत्यादि शतरंज के हैं।
- प्रमुख विदेशी खिलाड़ी
- वैसिली इवानचुक, व्लादिमीर क्रामनिक, बेसेलिन टोपलोव, पीटर लैको, वेरा मेनचिक, यिफान होऊ मैगनस कार्लसन
तीरंदाज़ी
- प्राचीन भारत में तीरंदाजी, धनुर्विद्या के नाम से जानी जाती थी।
- भारत में चार वेद हैं और उनके चार उपवेद हैं।
- इनमें से एक उपवेद ‘धनुर्वेद’ , में इस युद्धकला का वर्णन किया गया है।
- गुरु गोविंद सिंह धनुर्विद्या के ज्ञाता थे।
- तीरंदाजी को 1972 में म्यूनिख (जर्मनी)ओलंपिक में शामिल किया गया।
- भारत में तीरंदाजी को बढ़ावा देने के लिये 8 अगस्त, 1973 को भारतीय तीरंदाजी संगठन का गठन किया गया।
- भारतीय तीरंदाज़ों के नाम
- डोला बनर्जी, जयंत ठाकुर, लिंबा राम, सत्यदेव प्रसाद, तरुण दीप राय, कृष्णा घटक, दीपिका कुमारी, बोंबायला देवी, श्याम लाल, लक्ष्मीरानी माझी, अभिषेक वर्मा, संदीप चौहान, रजत वर्मा
कुश्ती
- कुश्ती एक प्राचीन खेल है, जिसका प्रमाण 2750 से 2600 ई. पू. में मिलता है।
- 708 ई. पू. में ओलंपिक खेलों में कुश्ती की स्पर्धाएँ आयोजित हुईं।
- इसे प्राचीन काल में मल्लयुद्ध, मल्लक्रीड़ा आदि कहा जाता था।
- वर्तमान में कुश्ती की दो शैलियाँ प्रचलित हैं
- मुक्त शैली
- ग्रीको रोमन कुश्ती
- कुश्ती के अन्य स्वरूप एवं नाम
- किरिप – निकोबार में
- सालदू
- इसमें दो टीमें भाग लेती हैं और एक टीम विपक्षी टीम के खिलाड़ियों को एक घेरे से बाहर निकालने का प्रयास करती हैं।
- कीनाग हुआन – खिलाड़ी सूअर के साथ कुश्ती लड़ता है।
- कुश्ती में कुछ प्रमुख शब्द
- पॉइंट, फॉल, मैट, पैनल्टी पॉइंट, ब्रेक डाउन, बॉडी प्रेस, स्लैम, हुक, हैड होल्ड, रेफ्रा, सडेन डैथ, टाई, फाउल, डॉगफाल इत्यादि
- भारतीय कुश्ती पहलवानो के नाम
- गामा पहलवान, दारा सिंह, गुरु हनुमान, सतपाल सिंह, सुशील कुमार, धीरज ठकरान, खशाबा जाधव
गिल्ली-डंडा
- यह खेल खुले मैदान में खेला जाता है।
- इसमें लकड़ी टुकड़ागिल्ली कहलाता है, जिसके दोनों सिरे नुकीले नाए जाते हैं।
- गिल्ली-डंडाके अन्य नाम
- बांग्ला में डांगुली
- कन्नड़ में चिन्नी डंडू
- मराठी में विति डंडू
- केरल में – कुट्टीयम कोलुम कहते हैं।
- इसमें खिलाड़ियों की अधिकतम संख्या निर्धारित नहीं रहती।
खो-खो
- खो-खो मैदानी खेलों के सबसे प्राचीनतम रूपों में से है।
- इसका उदभव प्रागैतिहासिक भारत से माना जा सकता है।
- इस खेल की चर्चा महाभारत में भी की गई है।
- इसमें दो टीमें भाग लेती हैं और प्रत्येक में 12 खिलाड़ी होते हैं।
पचीसी/चौसर/चौपड़
- इसे पचीसी, चौसर, चौपड़ या पासा भी कहते हैं।
- महाभारत के एक महत्त्वपूर्ण प्रसंग में कौरवों और पांडवों के बीच यह खेल खेला गया था. जिसमें पांडवों की हार हुई थी। उस समय इसे ‘धूत क्रीड़ा’ भी कहा जाता था।
- मुस्लिम काल में यह खेल शासक वर्ग तथा सामान्य लोगों के घरों में पासा नाम से प्रचलित था। इसका यूरोपीय रूपांतरण ‘लूडो’ है।
कबड्डी
- कबड्डी को पश्चिमी भारत में हू-तू-तूऔर दक्षिण भारत में चेडुगुडु के नाम से जानते हैं।
असोल आप और असोल ताले आप
- अंडमान और निकोबार में रहने वाली निकोबारी लोगों के दो मख्य खेल असोल आप और असोल ताले आप हैं।
- इसमें असोल आप नौका दौड़ है।
- ‘असोल ताले आप’ पानी के बजाय रेत पर होने वाली नौका दौड़ है।
धोपखेल
- यह असम का लोकप्रिय खेल है।
- यह वसंत ऋतु में रंगोली बिहू के अवसर पर खेला जाता है।
- इसमें 11-11 खिलाड़ियों की एक-एक टीम खुले मैदान में आसमान में उछाली गई रबड़ की गेंद या धोप को पकड़ने का प्रयास करती है।
वल्लमकली
- यह केरल की प्रसिद्ध सर्प-नौका दौड़ है जो ओणम के दिन होती है।
गेल्ला -छूट
- यह त्रिपुरा का प्रसिद्ध स्थानीय खेल है। इसमें खिलाड़ियों के दो समूह भाग लेते हैं, जिनमें करीब सात से दस खिलाड़ी होते हैं।
हियांग तन्नाबा
- यह मणिपुर का नौका दौड़ संबंधी खेल है जो कि लाई हराओबा उत्सव पर खेला जाता है।
कंग शनाबा
- यह मणिपुर का लोकप्रिय खेल है ।
इन्सुकनावर
- मिज़ोरम में खेले जाने वाले इस खेल में एक खिलाड़ी डंडे से विपक्षी खिलाड़ी को धकेलता है।
- इसमें केवल पुरुष ही भाग लेते हैं।
- इस खेल को मिजोरम का राज्य खेल घोषित किया गया है।
खोंग खांजेई
- यह खेल मणिपुर में खेला जाता है।
- इसे मुकना खांजेई भी कहते हैं।
- यह खेल आधुनिक हॉकी की तरह है, परंतु इसे नंगे पाँव खेलते हैं।
मल्लखंभ
- यहाँ मल्ल का आशय शारीरिक बल और खंभ का आशय खंभे से है।
- मल्लखंभ का उल्लेख 12वी सदी में चालुक्यकालीन ग्रंथों में मिलता है।
- पेशवा बाजीराव द्वितीय के गुरुबालमभट्ट दादा देवधर ने इसका प्रचलन दोबारा शुरू किया।
- इसमें ज़मीन में फँसे एक खंभे पर चढ़कर खिलाड़ी कौशल का प्रदर्शन करते हैं।
- मल्लखंभ खेल लकड़ी के खंभे पर खेला जाता है।
- राष्ट्रीय स्तर पर मल्लखंभ के प्रसिद्ध केंद्रों में उज्जैन को विशिष्ट स्थान प्राप्त है।
- 2013 में मध्य प्रदेश सरकार ने इसे मध्य प्रदेश का राज्य खेल घोषित किया है।
- इस खेल को पहली बार 1958 ई. में नेशनल जिमनास्टिक चैंपियनशिप के तहत राष्ट्रीय खेल प्रतियोगिता में शामिल किया।
अन्य प्रमुख खेल
मिज़ो इंचाई
- यह मणिपुर की परंपरागत कुश्ती है।
होले त्सो डुकानाराम
- यह अरुणाचल प्रदेश का खेल है जिसमें जानवरों की नकल उतारी जाती है।
हीनम तुरनाम
- अरुणाचल प्रदेश के इस खेल में प्रतिभागी बतौर शिकारी जंगल शिकार करते हैं।
पोरोक-पामिन सिनम
- अरुणाचल प्रदेश के इस खेल में लंगड़ी टाँग के ज़रिये दूसरे खिलाड़ी को एक घेरे से बाहर निकालने का प्रयास होता है।
मुकना
- यह मणिपुर की परंपरागत कुश्ती है।
- यह जूडो और कुश्ती का मिला-जुला रूप है।
इनबुआन
- यह मिज़ोरम की परंपरागत कुश्ती है।
थ्वांगमुंग
- यह त्रिपुरा में खेले जाने वाली कुश्ती का एक प्रकार है।
सागोल खांजेई
- मणिपुर में खेला जाने वाला यह खेल आधुनिक पोलो की तरह होता है। इसमें एक खांग यानी गेंद को ‘सागोल’ यानी घोड़े पर सवार होकर दूसरे के खेमे में डाला जाता है।
यूबी-लाकपी
- यह मणिपुर का खेल है जो कि आधुनिक रग्बी की तरह होता है।
- इसमें सात खिलाड़ियों की दो टीमें होती हैं और वे एक नारियल को एक-दूसरे से छीनने का प्रयास करती हैं।
जल्लीकटू
- तमिलनाडु में पोंगल पर्व पर होने वाले इस खेल में बे-लगाम बैल को नियंत्रित करने का प्रयास किया जाता है।
- इसके अन्य नाम वायेली विरटू और मंजू विरटू हैं।
पोथू पोटू मटसारम
- केरल में होने वाला बैल दौड़ को पोथू पोटू मटसारम कहते हैं।