राज्य मंत्री परिषद (State Council of Ministers)
- राज्य की मंत्रिपरिषद का मुखिया यानी मुख्यमंत्री होता है।
- अनुच्छेद 163 -राज्यपाल को सहायता एवं सलाह देने के लिए मंत्रिपरिषद
- अनुच्छेद 164– मंत्रियों के वेतन एवं भत्तों, शपथ, योग्यता, उत्तरदायित्व, कार्यकाल एवं नियुक्ति के बारे में बताया गया है।
संवैधानिक प्रावधान
अनुच्छेद 163-राज्यपाल को सहायता एवं सलाह देने के लिए मंत्रिपरिषद
- राज्यपाल को सहायता और सलाह देने के लिए एक मंत्रिपरिषद होगी, जिसका प्रधान मुख्यमंत्री होगा। (स्व विवेकानुसार किये गए कार्यो को छोड़कर)
- स्व विवेकानुसार किये गए कार्यो का अंतिम निर्णय राज्यपाल का होगा और राज्यपाल द्वारा की गई किसी कार्य पर प्रश्न नहीं की जाएगी कि उसे अपने विवेकानुसार कार्य करना चाहिए था या नहीं।
- इस प्रश्न की किसी न्यायालय में जांच नहीं की जाएगी कि क्या मंत्रियों ने राज्यपाल को कोई सलाह दी
अनुच्छेद 164-मंत्रियों संबंधी अन्य उपबंध
- मुख्यमंत्री की नियुक्ति राज्यपाल द्वारा की जायेगी
- अन्य मंत्रियों की नियुक्ति राज्यपाल मुख्यमंत्री के परामर्श पर करेगा।
- छत्तीसगढ़, झारखंड, मध्य प्रदेश एवं ओड़ीशा में अन्य कार्यों के अलावा जनजातियों के कल्याण हेतु एक पृथक् मंत्री/आदिवासी मंत्री होगा।
- राज्यों में मुख्यमंत्री समेत मंत्रियों की अधिकतम संख्या विधानसभा की कुल सदस्य संख्या के 15 प्रतिशत से अधिक नहीं होगी किंतु राज्यों में मुख्यमंत्री समेत मंत्रियों की न्यूनतम संख्या 12 से कम नहीं होगी। इस प्रावधान को 91वें संविधान संशोधन विधेयक, 2003 द्वारा जोड़ा गया है।
- राज्य विधानमंडल के किसी भी सदन का सदस्य यदि दलबदल के आधार पर दोषी करार दिया जाता है तो ऐसा सदस्य मंत्री होने पर मंत्री पद के भी अयोग्य होगा। इस उपबंध को 91वें संविधान संशोधन विधेयक, 2003 द्वारा जोड़ा गया है।
- मंत्रिपरिषद सामूहिक रूप से राज्य विधानसभा के प्रति उत्तरदायी होगी।
- मंत्रियों को शपथ राज्यपालदिलायेंगे।
- एक मंत्री जो विधानमंडल के किसी सदन का सदस्य नहीं है, उसे 6 माह के भीतर किसी एक सदन का सदस्य बनना होगा।(निर्वाचन या मनोनयन द्वारा )
- मंत्रियों के वेतन एवं भत्ते, राज्य विधानमंडल द्वारा निर्धारित किए जाएंगे।
अनुच्छेद 166 – राज्य के राज्यपाल द्वारा कार्यवाही का संचालन
- सरकार की समस्त कार्यवाहियों राज्यपाल के नाम सेअभिव्यक्त होगी।
- राज्यपाल द्वारा राज्य सरकार की कार्यवाहियों में सुगमता लाने तथा मंत्रियों के बीच उनके आवंटन के लिए नियम बनाए जाएंगे।
अनुच्छेद 167- मुख्यमंत्री के कर्तव्य
प्रत्येक मुख्यमंत्री का कर्तव्य होगा, कि
- वह मंत्रिपरिषद द्वारा लिए गए सभी निर्णयों के बारे में राज्यपाल को सूचित करे;
- राज्यपाल द्वारा राज्य के प्रशासन से संबंधित मामलों के बारे में सूचना माँगे जाने पर सूचना प्रदान करना
- यदि राज्यपाल चाहे तो मंत्रिपरिषद के समक्ष किसी ऐसे मामले को विचार करने हेतु रखे जिस पर किसी मंत्री द्वारा निर्णय तो लिया जाना है लेकिन मंत्री परिषद ने विचार नहीं किया है।
अनुच्छेद 177-सदनों के संबंध में मंत्रियों के अधिकार
- प्रत्येक मंत्री को विधानसभा/विधान परिषद की कार्यवाही में तथा राज्य विधायिका की समिति (जिसका उसे सदस्य बनाया गया है) में भाग लेने और बोलने का अधिकार होगा, लेकिन उसे मत देने का अधिकार नहीं होगा।
- राज्यपाल को परामर्श देने के लिए मंत्रिपरिषद् हमेशा रहेगी, यदि राज्य विधानमण्डल विघटित हो गया हो या मंत्रिपरिषद् ने त्यागपत्र दे दिया हो ,तब भी वर्तमान मंत्रालय नए मंत्रालय के आने तक कार्यरत रहता है।
- एक मंत्री जो विधानमंडल के जिस सदन का सदस्य है, उसे दूसरे सदन की कार्यवाही में भाग लेने एवं बोलने का अधिकार है लेकिन वह मतदान उसी सदन में कर सकता है जिसका वह सदस्य है।
मंत्रियों की शपथ एवं वेतन
- राज्यपाल मंत्री को पद की शपथ दिलाते हैं।
- मंत्रियों के वेतन एवं भत्तों को राज्य विधानमंडल समय-समय पर तय करता रहता है।
- एक मंत्री राज्य विधानमंडल के सदस्य को मिलने वाले वेतन के बराबर ही वेतन एवं भत्ता ग्रहण करता है।
मंत्रियों के उत्तरदायित्व
सामूहिक उत्तरदायित्व के सिद्धांत
- अनुच्छेद 164 स्पष्ट करता है कि राज्य विधानसभा के प्रति मंत्रिपरिषद का सामूहिक उत्तरदायित्व होगा
- यदि विधानसभा मंत्रिपरिषद के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पास कर देती है तो सभी मंत्रियों सहित विधानपरिषद से आए मंत्रियों को भी त्यागपत्र देना पड़ता है।
- मंत्रिपरिषद राज्यपाल को विधानसभा विघटित करने और नए चुनाव कराने की घोषणा करने की सलाह दे सकती है।
- सामूहिक उत्तरदायित्व के सिद्धांत का अभिप्राय यह भी है कि कैबिनेट के फैसले के प्रति सभी मंत्री एकमत हैं, चाहे वे कैबिनेट बैठक से अलग हों।
- प्रत्येक मंत्री विधानमंडल के अंदर या बाहर कैबिनेट के निर्णय का समर्थन करें।
- यदि कोई मंत्री कैबिनेट के फैसले से असहमत है तो उसे त्यागपत्र दे देना चाहिए।
व्यक्तिगत उत्तरदायित्व
- अनुच्छेद 164 में व्यक्तिगत उत्तरदायित्व के सिद्धांत को भी दर्शाया गया है।
- राज्यपाल किसी मंत्री को तब भी किसी समय हटा सकता है जब विधानसभा विश्वास में हो। लेकिन मुख्यमंत्री की सलाह पर ही।
- मंत्री से मतभेद होने पर या मंत्री के कार्यकलापों से संतुष्ट न होने पर मुख्यमंत्री उस मंत्री से त्यागपत्र मांग सकता है, या राज्यपाल को उसे बर्खास्त करने की सलाह दे सकता है।
कोई भी विधिक उत्तरदायित्व नहीं
- भारतीय संविधान में केंद्रीय मंत्रियों की भांति विधिक जिम्मेदारी राज्यों के मंत्रियों के लिए नहीं है।
- मंत्रियों द्वारा राज्यपाल को दी गई सलाह की समीक्षा न्यायालय नहीं कर सकता है।
मंत्रिपरिषद का गठन
केंद्र की तरह ही राज्य मंत्रिपरिषद के भी तीन वर्ग है।
- 1.कैबिनेट मंत्री
- 2.राज्य मंत्री
- 3.उपमंत्री
कैबिनेट मंत्री
- कैबिनेट मंत्रियों के लिए राज्य सरकार के महत्वपूर्ण विभाग जैसे गृह, शिक्षा, वित्त, कृषि होते हैं।
- वे सभी कैबिनेट के सदस्य होते हैं
- वे सभी कैबिनेट के बैठक में भाग लेते है।
- उनकी जिम्मेदारी राज्य सरकार के संपूर्ण मामलों में होती है।
राज्य मंत्री
- राज्य मंत्रियों को या तो स्वतंत्र प्रभार दिया जा सकता है या उन्हें कैबिनेट के साथ संबद्ध किया जा सकता है।
- वे कैबिनेट के सदस्य नहीं होते है।
- वे कैबिनेट की बैठक में भाग लेते हैं (जब तक कि उन्हें बुलाया न जाए।)
उपमंत्री
- उन्हें स्वतंत्र प्रभार नहीं दिया जाता।
- उन्हें कैबिनेट मंत्रियों के साथ उनके प्रशासनिक, राजनीतिक और संसदीय कर्तव्यों में सहयोग के लिए संबद्ध किया जाता है।
- वे कैबिनेट के सदस्य नहीं होते है।
- वे कैबिनेट की बैठक में भाग नहीं लेते है।
- कई बार मंत्रिपरिषद में उप-मुख्यमंत्री को भी शामिल किया जा सकता है।
- उप मुख्यमंत्रियों की नियुक्ति राजनीतिक कारणों से की जाती है।
कैबिनेट
- मंत्रिपरिषद का एक छोटा-सा मुख्य भाग कैबिनेट या मंत्रिमंडल कहलाता है।
- इसमें केवल कैबिनेट मंत्री शामिल होते हैं। राज्य सरकार में यही वास्तविक कार्यकारिणी का केंद्र होता है।
कैबिनेट समितियां
- कैबिनेट विभिन्न प्रकार की समितियों के जरिए कार्य करती है, जिन्हें कैबिनेट समितियां कहा जाता है। ये दो तरह की होती हैं
1.स्थायी – प्रकृति स्थायी
2.अल्पकालिक- अस्थायी प्रकृति