• जल संसाधनों का कुशलतम उपयोग तथा अधिकतम विकास अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। इसके दो प्रमुख स्रोत हैं
    • 1. धरातलीय जल 
    • 2. भूमिगत जल

भूमिगत जल संसाधन (Groundwater Resources) 

  • भारत को मुख्यतः आठ भूमिगत जल प्रदेशों में बाँटा गया है
  1. प्री कैब्रियन रवेदार शैलों का प्रदेश
  2. प्री कैब्रियन अवसादी बेसिन
  3. गोंडवाना अवसादी बेसिन
  4. दक्कन ट्रैप प्रदेश
  5. सेनोजोइक अवसादी बेसिन
  6. सेनोजोइक भ्रंश बेसिन
  7. गंगा-ब्रह्मपुत्र बेसिन
  8. हिमालय क्षेत्र

 सिंचाई (Irrigation) 

  • खेतों में फसलों को कृत्रिम रूप से जल देना सिंचाई कहलाता है। 
  • भारत की कृषि का ज़्यादातर हिस्सा मानसूनी वर्षा पर निर्भर है। 
    • जब मानसून ठीक रहता है तो फसलों का उत्पादन बढ़ जाता है 
    • मानसून खराब होने पर फसलें या तो नष्ट हो जाती हैं । 

भारत में सिंचाई योजना

भारत में सिंचाई योजना को सामान्यतः तीन भागों में बाँटा गया है

  1. वृहद् सिंचाई योजना
  2. मध्यम सिंचाई योजना
  3. लघु सिंचाई योजना

1. वृहद् सिंचाई योजना

  • 10 हजार हेक्टेयर या उससे अधिक कृषि सिंचित भूमि के लिये सिंचाई योजना 

2. मध्यम सिंचाई योजना 

  • 2 हज़ार हेक्टेयर से लेकर 10 हजार हेक्टेयर के बीच की सिंचाई योजना 

3. लघु सिंचाई योजना 

  • 2 हजार हेक्टेयर से कम कृषि योग्य सिंचित क्षेत्र 
  • कुओं, नलकूपों, तालाबों, ड्रिप सिंचाई आदि को शामिल किया जाता है। 
  • लघु सिंचाई योजना के माध्यम से ही भारत में सर्वाधिक सिंचाई की जाती है। 
  • लघु सिंचाई को प्रोत्साहित करने हेतु 2006 में केंद्र सरकार ने ‘लघु सिंचाई योजना’ शुरू की
    • 2010 में राष्ट्रीय लघु सिंचाई मिशन के रूप में परिवर्तित कर दी गई 
    • जोकि 2013-14 तक जारी रही। 
    • 1 अप्रैल, 2014 से राष्ट्रीय लघु सिंचाई योजना,को  ‘राष्ट्रीय सतत् कृषि “विकास मिशन’ के अंतर्गत ‘खेत जल प्रबंधन नाम से क्रियान्वित की गई। 
    • 1 अप्रैल, 2015 को खेत जल प्रबंधन को ‘प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना’ में मिला दिया गया।

सिंचाई के साधन (Sources of Irrigation) 

  • कुल सिंचित क्षेत्रफल के लगभग आधे से अधिक भाग पर सिंचाई – छोटे साधनों, जैसे- कुएँ, नलकूपों, तालाबों, झीलों, जलाशयों आदि की सहायता से की जाती है, जबकि शेष भाग की सिंचाई नहर जैसे बड़े साधनों के माध्यम से की जाती है। 
  •  सिंचाई में सहायक विभिन्न साधनों का आनुपातिक योगदान (2015 के आँकड़ों के अनुसार) निम्नलिखित तालिका में उल्लिखित है

सिंचाई के साधन

कुल सिंचित क्षेत्र 

कुएँ एवं नलकूपों द्वारा

61.58%

नहरों द्वारा

24.54%

तालाबों द्वारा

2.97%

अन्य द्वारा

10.91% 

कुआँ एवं नलकूप सिंचाई (Well and Tubewell Irrigation) 

  • देश की कुल सिंचित भूमि के 61.58 प्रतिशत भाग की सिंचाई कुओं एवं नलकूपों से होती है। वर्तमान में ये भारत में सिंचाई के सर्वप्रमुख साधन हैं। 
  • गुजरात, महाराष्ट्र, पंजाब, राजस्थान तथा उत्तर प्रदेश में ये सिंचाई के प्रमुख साधन हैं। इसके अलावा हरियाणा, बिहार, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश एवं कर्नाटक राज्यों में भी कुओं एवं नलकूपों की सहायता से सिंचाई की जाती है। 
  • नलकूपों की सर्वाधिक संख्या उत्तर प्रदेश में है। इसका सर्वाधिक विस्तार सरयू पार के मैदानों में है। 

कुआँ एवं नलकूप सिंचाई के लाभ 

  • निर्धन कृषकों के लिये कुएँ द्वारा सिंचाई अधिक सुगम एवं सस्ता साधन है। 
  • कुआँ एवं नलकूप सिंचाई से मृदा के लवणीय होने का खतरा नहीं रहता है। 
  •  आवश्यकतानुसार जल के उपयोग के कारण ही नहरों की अपेक्षा इसमें जल की बर्बादी कम होती है।

सौनी परियोजना (Sauni Project) 

  •  17 अप्रैल, 2017 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुजरात के बोटाड (Botad) जिले में सौराष्ट्र नर्मदा अवतरण सिंचाई परियोजना के चरण-1 (लिंक-II) को राष्ट्र को समर्पित किया। उन्होंने सौनी योजना के चरण-II (लिंक-II) की आधारशिला भी रखी। 
  • इस परियोजना की संकल्पना, नर्मदा नदी के बाढ़ के पानी से सौराष्ट्र क्षेत्र की दस लाख एकड़ भूमि को लाभान्वित करने के लिये की गई है। इसके तहत सौराष्ट्र क्षेत्र के 115 बांधों को जोड़ा जाएगा एवं इस क्षेत्र को सूखे की समस्या से निजात मिलेगी। | 

नहर सिंचाई (Canal Irrigation)

  • यह भारत में सिंचाई का दूसरा प्रमुख साधन है, जिसके द्वारा 24.54 प्रतिशत भू-भाग पर सिंचाई होती है। 
  • नहरों द्वारा सिंचाई उत्तरी भारत में अधिक होती है, जबकि दक्षिण भारत में कठोर चट्टानी संरचना का विकास होने के कारण नहर निर्माण की प्रक्रिया अत्यंत जटिल होने से इसका विकास सीमित क्षेत्रों में (नदियों के डेल्टाई क्षेत्रों में) ही हो पाया है। 
  •  ध्यातव्य है कि उत्तरी भारत में मुलायम जलोढ़ मृदा का विस्तार होने के कारण नहरों का जाल निर्मित करना अपेक्षाकृत अधिक आसान रहा है। यही कारण है कि सतलुज- गंगा मैदानी क्षेत्र में नहरों द्वारा व्यापक रूप से सिंचाई की जाती है। 
  • नहरों द्वारा देश के कुल सिंचित क्षेत्र का सर्वाधिक विस्तार उत्तर प्रदेश में है। इसके अलावा मध्य प्रदेश, आंध्र प्रदेश, हरियाणा, पंजाब, बिहार आदि राज्यों में भी नहरों से सिंचाई होती है।

प्रमुख नहर सिंचाई परियोजना 

इंदिरा गांधी नहर परियोजनाः 

  • यह विश्व की विशालतम् सिंचाई परियोजना है।
  • इसकी नींव 30 मार्च, 1958 (कुछ स्रोतों में 31 मार्च) को तत्कालीन गृहमंत्री गोविंद बल्लभ पंत द्वारा रखी गई थी। 
  • यह राजस्थान के शुष्क एवं अर्द्धशुष्क क्षेत्रों को सिंचाई की सुविधा प्रदान करती है। 
  •  यह गंगानगर, बीकानेर, जैसलमेर तथा बाड़मेर जिलों को सिंचित करती है। 
  • यह सतलुज एवं ब्यास के संगम पर अवस्थित ‘हरिके बैराज’ से निकाली गई है।

पश्चिमी यमुना नहरः 

  • इस नहर का निर्माण तुगलक वंश के शासक ‘फिरोजशाह तुगलक’ ने करवाया था। यह यमुना नदी के दाहिने किनारे पर ताजेवाला (हरियाणा) से निकाली गई है। 

सरहिंद नहरः 

  • यह नहर पंजाब के रोपड़ से सतलुज नदी के बायें किनारे से निकाली गई है।

ऊपरी गंगा नहरः 

  • इस नहर को हरिद्वार के समीप गंगा नदी से निकाला गया है। इस नहर का प्रवाह बहुत ही उबड़-खाबड़ क्षेत्रों से | होता है। इस नहर के जल से उत्तर प्रदेश के अनेक ज़िलों की भूमि सिंचित होती है।

निचली गंगा नहरः 

  • यह नहर बुलंदशहर के नरौरा से गंगा नदी से निकलती है। यह नहर कासगंज के समीप ऊपरी गंगा नहर में मिल जाती है। इससे उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर, एटा, मैनपुरी, इटावा, कानपुर आदि क्षेत्रों में सिंचाई की जाती है। 

शारदा नहरः 

  • इसे उत्तराखंड के नैनीताल (बनबासा) के निकट शारदा नदी से निकाला गया है। इस नहर के माध्यम से उत्तर प्रदेश के शाहजहाँपुर, पीलीभीत, लखनऊ, प्रतापगढ़, सुल्तानपुर, जौनपुर आदि जिलों में सिंचाई की जाती है। इसी नहर पर ‘खातिमा शक्ति केंद्र’ भी स्थापित है।

भारत में सिंचाई की आधुनिक विधियाँ (Modern methods of Irrigation in India) 

ड्रिप सिंचाई (Drip Irrigation) 

  •  इस सिंचाई पद्धति के द्वारा पानी को पौधों की जड़ों पर बूंद-बूंद करके टपकाया जाता है, इसलिये इसे ‘टपक सिंचाई’ या ‘बूंद सिंचाई’ के नाम से भी जाना जाता है। सिंचाई की इस विधि की खोज ‘इज़राइल’ से मानी जाती है। 
  • इस विधि के तहत फसल को पानी धीमी गति से एवं रोजाना या एक दिन छोड़कर दिया जाता है। 
  • परंपरागत ‘सतही सिंचाई’ की तुलना में ‘ड्रिप सिंचाई’ के द्वारा कम जल में ही अधिक भूमि की सिंचाई होती है, क्योंकि इस विधि में जल को पाइपों के जाल के द्वारा सीधे पौधों की जड़ों तक पहुँचाया जाता है।

महत्त्वपूर्ण तथ्य 

  • त्वरित सिंचाई लाभ कार्यक्रम (AIBP) 1996-1997 में आरंभ किया गया। 
  • कमान क्षेत्र विकास कार्यक्रम 1974-75 में आरंभ किया गया। 
  • जल गुणवत्ता मूल्यांकन प्राधिकरण का गठन 2001 में किया गया। 
  • अंतर्राज्यीय नदी जल विवाद अधिनियम 1956 में पारित किया गया। 
  • पाकिस्तान से सिंधु नदी जल समझौता 19 सितंबर, 1960 में किया गया था। 
  • 2003 में आरंभ की गई हरियाली योजना का संबंध जल प्रबंधन’ से है।
  • सिंचाई की यह विधि ऊसर, रेतीली मृदा, विषम उच्चावच वाले क्षेत्रों के लिये अत्यंत उपयोगी मानी जाती है। इस विधि का उपयोग प्रायः सब्जियाँ उगाने में तथा अंगूर, नींबू व अन्य फलों की खेती में किया जाता है। 

ड्रिप सिंचाई के लाभ 

  • ड्रिप सिंचाई में पेड़-पौधों को नियमित ज़रूरी मात्रा में पानी मिलता रहता है तथा पानी की बचत होती है। 
  • इस पद्धति से सिंचाई के कारण मृदा में लवणीकरण एवं खरपतवार की समस्या उत्पन्न नहीं होती है तथा मृदा अपरदन में भी कमी आती है। 
  • इस विधि के द्वारा असमतल जमीन पर भी फसलों की आसानी से सिंचाई की जा सकती है। 
  • आवश्यक रासायनिक पदार्थों एवं उर्वरकों को सीधे पौधों की जड़ों  तक पहुँचाया जाता है। 
  • उर्वरक, अंतर संवर्द्धन और श्रम का मूल्य कम हो जाता है। ड्रिप सिंचाई पद्धति अपनाने से कृषि उत्पादकता में वृद्धि देखी जा रही है। 

ड्रिप सिंचाई की सीमाएँ

  • ड्रिप सिंचाई हेतु प्रयोग किये जा रहे ट्यूबों को सूर्य के प्रकाश से हानि पहुँचती है, अतः वे जल्दी खराब हो सकते हैं। 
  • ड्रिप सिंचाई विधि में आरंभिक लागत अधिक होती है। 

फव्वारा सिंचाई (Sprinkler Irrigation) 

  • इसे ‘बौछारी सिंचाई’ के नाम से भी जाना जाता है। इसमें सिंचाई जल को पंप करके पाइपों की सहायता से सिंचाई स्थल तक ले जाया जाता है। 
  • इसमें दबाव पद्धति द्वारा फुहारों या वर्षा की बूंदों के समान जल सीधे फसल पर छिड़का जाता है। इस प्रकार छिड़काव द्वारा पानी खेतों के चारों तरफ फैलता है। 

फव्वारा सिंचाई के लाभ 

  • परंपरागत सिंचाई की तुलना में फव्वारा सिंचाई से जल की बचत होती है। 
  • पानी के साथ घुलनशील उर्वरक, कीटनाशक तथा खरपतवारनाशी दवाओं का प्रयोग भी छिड़काव के साथ ही आसानी से किया जा सकता है। 
  • पाला पड़ने से पहले बौछारी सिंचाई करने पर तापमान बढ़ जाने से फसल को पाले से नुकसान नहीं होता है। 
  • सिंचाई के लिये नाली, मेड़ बनाने तथा उनके रख-रखाव की आवश्कता नहीं पड़ती है, जिससे श्रम की बचत होती है। 

फव्वारा सिंचाई की सीमाएँ 

  • तेज हवा में सिंचाई करने पर पानी का वितरण असमान हो जाता है। 
  • पानी साफ होना चाहिये, उसमें रेत, कूड़ा आदि नहीं होना चाहिये अन्यथा कूड़ा फव्वारों वाली पाइपों में फँस जाता है।

सतही सिंचाई (Surface Irrigation)

भारत में अधिकतर कृषि योग्य क्षेत्रों में सतही सिंचाई होती है। इसमें प्रमुख हैं- नहरों, नलकूपों, तालाबों, कुओं द्वारा खेत में जल का वितरण किया जाना तथा एक किनारे से खेत में जल को फैलाया जाना। 

सतही सिंचाई के लाभ 

  • फसलों की पैदावार में बढ़ोतरी। 
  • उर्वरक उपयोग की दक्षता में वृद्धि। 

सतही सिंचाई से समस्याएँ 

  • इस प्रणाली में खेत के उपयुक्त रूप से तैयार न होने पर जल का अत्यधिक नुकसान होता है एवं अधिकतर जल का ज़मीन में, रिसकर व वाष्पीकरण द्वारा नुकसान हो जाता है। 
  •  मृदा लवणीकरण की समस्या बढ़ती है। 

रेनगन तकनीक (Raingun Technology) 

  • इस तकनीक के द्वारा 20 से 60 मी की दूरी तक प्राकृतिक बरसात की तरह सिंचाई की जाती है। 

फर्टिगेशन (Fertigation) 

  • इस विधि के द्वारा जल के साथ उर्वरकों को भी मिलाकर सिंचाई की क्रिया संपन्न की जाती है। 
  • इस सिंचाई की आधुनिक खोज ‘इजराइल’ से हुई। 

कमान क्षेत्र विकास कार्यक्रम (Command Area Development Programme) 

  •  केंद्र द्वारा प्रायोजित कमान क्षेत्र विकास कार्यक्रम को पाँचवी पंचवर्षीय योजना के प्रारंभिक वर्ष 1974-75 में प्रारंभ किया गया था। 
  • इस कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य सिंचाई साधनों का दक्षतापूर्ण उपयोग करना, सिंचित भूमि क्षेत्र में कृषि उत्पादन बढ़ाना था। 
  • 2004 में कमान क्षेत्र विकास कार्यक्रम का नामकरण ‘कमान क्षेत्र विकास तथा जल प्रबंधन कार्यक्रम’ (Command Area Development and Water Management Programme- CADWM) कर दिया गया है।

बहुउद्देशीय परियोजनाएँ (Multipurpose Projects)

  • जवाहरलाल नेहरू ने ‘आधुनिक भारत का मंदिर’ कहा था। 
  • बहुउद्देशीय परियोजनाओं का उद्देश्य 
    • सिंचाई 
    • जलविद्युत उत्पादन
    • बाढ़ नियंत्रण 
    • पेयजल आपूर्ति
    • नौकायन
    • मत्स्य पालन 
    • वन्यजीव संरक्षण 
    • मृदा संरक्षण
    • पर्यटन आदि 

भारत की कुछ प्रमुख बहुउद्देशीय नदी घाटी परियोजनाएँ

  1. दामोदर घाटी परियोजना
  2. भाखड़ा नांगल परियोजना
  3. हीराकुंड परियोजना
  4. नर्मदा घाटी परियोजना
  5. टिहरी बांध परियोजना

दामोदर घाटी परियोजना 

  • यह स्वतंत्र भारत की पहली बहुउद्देशीय परियोजना है। 
    • जिसमें दामोदर और उसकी सहायक नदियों बराकर, कोनार, बोकारो पर बाँध बनाया गया है। 
  • यह संयुक्त राज्य अमेरिका के ‘टेनेसी नदी घाटी परियोजना’ पर आधारित है। 
  • इस परियोजना का विस्तार झारखंडपश्चिम बंगाल राज्य में है। 
  • प्रमुख बांध तिलैया, मैथान, कोनार, पंचेत हिल आदि। 
  • प्रमुख ताप गृह – बोकारो ताप गृह, दुर्गापुर ताप गृह, चंद्रपुरा ताप गृह आदि।

पोलावरम सिंचाई परियोजना 

  • आंध्र प्रदेश में बहुउद्देशीय पोलावरम सिंचाई परियोजना 
  • यह परियोजना गोदावरी नदी पर स्थापित की जा रही है। 
  • यह परियोजना ओडिशा, छत्तीसगढ़, तेलंगाना व आंध्र प्रदेश के ‘मध्य विवादित है।

भाखड़ा नांगल परियोजना 

  • यह सतलुज नदी पर स्थित देश की सबसे बड़ी बहुउद्देशीय परियोजना है। 
  • इस पर विश्व का सबसे ऊँचा गुरुत्वीय बांध बनाया गया है। 
  • इस परियोजना से दिल्ली, हिमाचल प्रदेश, पंजाब, हरियाणा व राजस्थान लाभान्वित हो रहे हैं। 
  • इस बांध के पीछे निर्मित झील को गोविंद सागर (हिमाचल प्रदेश)  कहा जाता है।

हीराकुंड परियोजना 

  • ओडिशा राज्य में महानदी पर निर्मित है। 
  • हीराकुड बांधविश्व का सबसे लंबा बांध है।

टिहरी बांध परियोजना 

  • बांध का निर्माण –  भागीरथीभीलंगना नदी के संगम पर 
  • इस बांध का निर्माण भूकंप क्षेत्र के जोन-V में किया गया है अतः इसे भूकंप के दृष्टिकोण से अतिसंवेदनशील माना जाता है। 
  • इस बांध के पीछे निर्मित जलाशय को ‘स्वामी रामतीर्थ सागर’ नाम दिया गया है। 

नर्मदा घाटी परियोजना 

  • नर्मदा नदी पर बांध
    • गुजरात – ‘सरदार सरोवर बांध’ 
    • मध्य प्रदेश – ‘नर्मदा सागर बांध’ 
  • सरदार सरोवर परियोजना मध्य प्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र व राजस्थान की संयुक्त परियोजना है।

भारत की प्रमख बहउद्देशीय परियोजनाएँ 

संबंधित नदी

परियोजना

संबंधित राज्य

सिंधु नदी

नीमो बाजमो परियोजना

लद्दाख 

सतलुज नदी 

भाखड़ा-नांगल परियोजना

हिमाचल प्रदेश, पंजाब,

हरियाणा, राजस्थान

नाथपा-झाकरी परियोजना

 कोलदाम परियोजना

हिमाचल प्रदेश

सतलुज + ब्यास

इंदिरा गांधी परियोजना 

पंजाब, हरियाणा, राजस्थान 

ब्यास नदी

पोंग परियोजना

मंडी परियोजना

हिमाचल प्रदेश

सुइल  नदी

सुइल नदी परियोजना

हिमाचल प्रदेश

रावी नदी

चमेरा परियोजना

हिमाचल प्रदेश

थीन परियोजना

(रंजीत सागर बांध )

पंजाब, हिमाचल प्रदेश, जम्मू कश्मीर 

चेनाब नदी

सलाल परियोजना

बगलिहार परियोजना

दुलहस्ती परियोजना 

जम्मू-कश्मीर

झेलम नदी

तुलबुल परियोजना

उरी परियोजना 

जम्मू-कश्मीर

किशनगंगा नदी 

किशनगंगा परियोजना

जम्मू-कश्मीर

शुरू नदी

चूटक परियोजना

कारगिल ,लद्दाख 

टोंस नदी 

किसाऊ बांध परियोजना

HP ,UK ,HR,DELHI,RJ,UP

भिलांगना + भागीरथी नदी

टिहरी परियोजना

उत्तराखंड

रामगंगा नदी

रामगंगा परियोजना

उत्तराखंड

काली (शारदा) नदी

टनकपुर परियोजना

उत्तराखंड, नेपाल

गंडक नदी

गंडक नदी परियोजना

उत्तर प्रदेश, बिहार, नेपाल

कोसी नदी

कोसी परियोजना

बिहार, नेपाल

रिहंद नदी 

रिहंद परियोजना

उत्तर प्रदेश

सोन नदी 

बाणसागर परियोजना

उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार

बेतवा नदी

माताटीला परियोजना 

मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश

रानी लक्ष्मीबाई बांध परियोजना

उत्तर प्रदेश

चम्बल नदी

चंबल परियोजना 

मध्य प्रदेश राजस्थान

गाँधी सागर बांध 

मध्य प्रदेश

जवाहर सागर परियोजना

राजस्थान

नर्मदा नदी

नर्मदा सागर परियोजना

मध्य प्रदेश,गुजरात 

सरदार सरोवर परियोजना

मध्य प्रदेश महाराष्ट्र राजस्थान गुजरात

दामोदर नदी

दामोदर घाटी परियोजना 

झारखंड, पश्चिम बंगाल

मयूराक्षी नदी

मयूराक्षी परियोजना

झारखंड, पश्चिम बंगाल

गंगा नदी 

फरक्का परियोजना

पश्चिम बंगाल

कामेंग नदी

कामेंग जलविद्युत परियोजना

अरुणाचल प्रदेश

बराक + तुईवाई

तिपाईमुख जलविद्युत परियोजना

मणिपुर

बराकर नदी

तिलैया परियोजना

झारखंड

पेनगंगा नदी 

पेनगंगा परियोजना

महाराष्ट्र 

पवना नदी

पवना परियोजना

महाराष्ट्र

काल्पोंग नदी

काल्पोंग परियोजना

अंडमान निकोबार 

कृष्णा नदी

तेलुगू गंगा परियोजना

महाराष्ट्र तमिलनाडु आंध्रप्रदेश कर्नाटक

श्रीशैलम परियोजना

आंध्र प्रदेश, तेलंगाना

अलमाटी बांध परियोजना

आंध्र प्रदेश कर्नाटक महाराष्ट्र

नागार्जुन सागर परियोजना

आंध्र प्रदेश तेलंगाना 

महानदी

हीराकुंड बांध परियोजना

उड़ीसा

साबरमती नदी

साबरमती परियोजना

गुजरात 

ताप्ती नदी

उकाई परियोजना

गुजरात

काकरापार परियोजना

गुजरात

घटप्रभा नदी

घटप्रभा परियोजना

कर्नाटक

हिडकल परियोजना

कर्नाटक

पेनार नदी +

तुंगभद्रा नदी

तुंगभद्रा परियोजना

आंध्र प्रदेश, कर्नाटक

कोयना नदी

कोयना परियोजना

महाराष्ट्र 

पूर्णा नदी

पूर्णा परियोजना

महाराष्ट्र

वैनगंगा नदी

संजय सरोवर परियोजना

मध्य प्रदेश

शरावती नदी

शरावती परियोजना

कर्नाटक ,गोवा, तमिलनाडु

कावेरी नदी

शिव समुद्रम परियोजना

कर्नाटक

मेट्टूर  परियोजना 

तमिल नाडु

पेरियार नदी

इडुक्की (पेरियार) परियोजना 

केरल

गोदावरी नदी

पोचनपाद  परियोजना

तेलंगाना

राष्ट्रीय जल ग्रिड मिशन (National Water Grid Mission) 

  • राष्ट्रीय जल ग्रिड की संकल्पना सबसे पहले डॉ. राम मनोहर लोहिया द्वारा दी गई थी। 
  • 1972 में के.एल. राव ने गंगा-कावेरी लिंक नहर की संकल्पना दी। 
  • 2002 में डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम ने इस बात पर बल दिया कि सूखे एवं बाढ़ की समस्या को दूर करने के लिये भारत की प्रमुख नदियों को आपस में जोड़ना आवश्यक है। 
  • राष्ट्रीय जल ग्रिड की संकल्पना –  ‘केंद्रीय जल एवं शक्ति आयोग’ द्वारा की गई। 

अफगान-भारत मैत्री बांध (पूर्व नाम-सलमा बांध) परियोजना 

  • यह बांध अफगानिस्तान के हेरात प्रांत में ‘चिश्त-ए-शरीफ़’ में हरीरूद नदी (Harirud River) पर भारत सरकार द्वारा तैयार किया गया है। 
  • परियोजना को वैपकॉस लिमिटेड(WAPCOS Limited) ने तैयार किया है,जो जल मंत्रालय के अंतर्गत भारत सरकार का उपक्रम है।
  • WAPCOS – Water and Power Consultancy Services Limited

प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना (PMKSY) 

  • योजना की अवधि  – पाँच वर्ष (2015-16 से 2019-20) के लिये 
  • इस योजना के 4 घटक हैं- 
    • त्वरित सिंचाई लाभ कार्यक्रम
    • हर खेत का पाना
    • प्रति बूंद अधिक फसल
    • जल-संभर (वाटरशेड) विकास 
  • योजना का क्रियान्वयन – जल मंत्रालय, ग्रामीण विकास मंत्रालय तथा कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय मिलकर करेंगे। 

कुछ प्रमुख अंतर्राज्यीय नदी जल विवाद

(Inter-State River water Disputes)

सतलुज-यमुना लिंक नहर विवाद

  • पंजाब तथा हरियाणा के मध्य

यमुना नदी जल विवाद

  • उत्तर प्रदेश, हरियाणा तथा दिल्ली के मध्य
  • हरियाणा में निर्माणाधीन हथिनीकुंड परियोजना को लेकर विवाद है।

कृष्णा नदी जल विवाद

  • तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक तथा महाराष्ट्र के मध्य
  • कर्नाटक में कृष्णा नदी पर अलमट्टी बांध की ऊँचाई बढ़ाने को लेकर जल विवाद है।

कावेरी नदी जल विवाद

  • पुदुच्चेरी, कर्नाटक, तमिलनाडु तथा केरल के मध्य

पेरियार नदी जल विवाद

  • तमिलनाडु तथा केरल के मध्य
  • पेरियार नदी पर निर्मित मुल्ला पेरियार बांध की ऊँचाई को लेकर

अंतर्राज्यीय नदी जल विवादों के समाधान से संबंधित संवैधानिक प्रावधान/ उपबंध 

  • अनुच्छेद 262(1) 
    • संसद, द्वारा अंतर्राज्यीय नदी के जल वितरण जैसे मुद्दों के न्याय निर्णयन के लिये विशेष अधिकरण गठित करने की शक्ति 
  • अनुच्छेद 262(2) 
    • कोई न्यायालय अंतर्राज्यीय नदी  मुद्दे के संबंध में अपनी अधिकारिता का प्रयोग नहीं करेगा 
    • उच्च न्यायालय सहित सर्वोच्च न्यायालय भी उस अधिकरण की कार्यवाही में हस्तक्षेप या उसके निर्णय का न्यायिक पुनर्विलोकन नहीं कर सकेगा। 
  • संसद द्वारा इस संबंध में 1956 में दो अधिनियम पारित किये गए
    • नदी बोर्ड अधिनियम, 1956
    • अंतर्राज्यीय नदी जल विवाद अधिनियम, 1956 

नदी बोर्ड अधिनियम, 1956

  • अंतर्राज्यीय नदियों एवं नदी घाटियों के नियमन तथा विकास हेतु नदी बोर्ड गठित करने का प्रावधान है। 
  • केंद्र सरकार इसकी अधिसूचना जारी कर सकती है। 

अंतर्राज्यीय नदी जल विवाद अधिनियम, 1956 

  • यह कानून पूरे भारत में मान्य है। यदि किसी राज्य का किसी अन्य राज्य के साथ जल विवाद है तो वहाँ की सरकार इस कानून के अंतर्गत केंद्र सरकार से अनुरोध कर सकती है कि यह विवाद निपटारे के लिये अधिकरण को सौंप दिया जाए। 
  • उच्चतम न्यायालय और अन्य न्यायालय भी अधिकरण के निर्णय में हस्तक्षेप नहीं करेंगे। 

जल को शुद्ध करने के प्रमुख उपाय/विधियाँ 

  1. आरओ सिस्टम (Reverse Osmosis System)
  2. यूवी रेडिएशन सिस्टम (Ultraviolet Radiation System) 
  3. क्लोरीनेशन (Chlorination)
  4. हैलोजन टैबलेट (Halogen Tablets)

आरओ सिस्टम (Reverse Osmosis System) 

  • यह पेयजल को साफ करने कातरीका है। 

यूवी रेडिएशन सिस्टम (Ultraviolet Radiation System) 

  • यूवी रेडिएशन सिस्टम से पानी में मौजूद वायरस और बैक्टीरिया मर जाते हैं।
  • यह पानी से काई, कार्बनिक कणों, घुलनशील ठोस पदार्थ, बैक्टीरिया, विषाणु और भारी तत्त्वों को बाहर करता है।

क्लोरीनेशन (Chlorination) 

  • क्लोरीनेशन के जरिये भी पानी साफ किया जाता है। 
  • यह पानी में मौजूद हानिकारक बैक्टीरिया को नष्ट करता है।

हैलोजन टैबलेट (Halogen Tablets)

  • आकस्मिक परिस्थितियों में पानी साफ करने के लिये हैलोजन टैबलेट उपयोगी होती है। 

पेयजल में विषैले तत्त्व 

  • जैसे- कैडमियम, लेड , MERCURY, पारा, निकेल, सिल्वर, आर्सेनिक आदि।  
  • जल में मैग्नीशियम व सल्फेट की अधिकता से  – आँतों में जलन
  • MERCURY से बीमारी –  Minamata
  • कैडमियम से बीमारी – ईटाई-ईटाई 
  • फ्लोराइड से बीमारी –  ‘फ्लोरोसिस’ की बीमारी हो जाती है।
  • आर्सेनिक से बीमारी  – कैंसर, लीवर फाइब्रोसिस, हाइपर पिगमेंटेशन

पेयजल के मानक 

  • WHO के अनुसार, पेयजल का PH मान 7 से 8.5 के मध्य हो। 
  • जल में आर्सेनिक का मान्य स्तरः 
    • भारतीय मानक ब्यूरो0.05 मिलीग्राम/प्रति लीटर
    • WHO के अनुसार – अधिकतम 0.01 मिलीग्राम/प्रति लीटर 
  • आर्सेनिक से खतरेः जल में आर्सेनिक की मात्रा अधिक होने पर कैंसर, लीवर फाइब्रोसिस, हाइपर पिगमेंटेशन जैसी बीमारिया हो जाती हैं।

भारत में जल संसाधन, सिंचाई एवं बहुउद्देशीय परियोजनाएँ