राज्यपाल (Governor)

  • संविधान के छठे भाग के अध्याय-2 में  अनुच्छेद 153 से 167 तक राज्य कार्यपालिका के बारे में बताया गया है। 
  • राज्य कार्यपालिका में शामिल होते हैं 
    1. राज्यपाल 
    2. मुख्यमंत्री 
    3. मंत्रिपरिषद 
    4. राज्य के महाधिवक्ता (Advocate General)।
  • राज्य का कार्यकारी प्रमुख (संवैधानिक मुखिया)राज्यपाल होता है।  
  • राज्यपाल, केंद्र सरकार के प्रतिनिधि के रूप में भी कार्य करता है। 
  • सामान्यतः प्रत्येक राज्य के लिए एक राज्यपाल होता है, 
  • लेकिन सातवें संविधान संशोधन 1956 के अनुसार एक ही व्यक्ति को दो या अधिक राज्यों का राज्यपाल भी नियुक्त किया जा सकता है।

राज्यपाल की नियुक्ति 

  • उसकी नियुक्ति राष्ट्रपति के मुहर लगे आज्ञापत्र के माध्यम से होती है। इस प्रकार वह केंद्र सरकार द्वारा मनोनीत होता है 
  • लेकिन राज्यपाल का कार्यालय केंद्र सरकार के अधीन रोजगार नहीं है। 
  • यह एक स्वतंत्र संवैधानिक कार्यालय है।
  • कनाडा मॉडल के तरह राज्यपाल को केंद्र द्वारा नियुक्त किया जाता है
  • राज्यपाल के रूप में नियुक्त किए जाने वाले व्यक्ति के लिए दो अर्हताएं निधार्रित की। 
    • 1. उसे भारत का नागरिक होना चाहिए। 
    • 2. वह 35 वर्ष की आयु पूर्ण कर चुका हो। 
    • इसके अतिरिक्त दो अन्य परंपराएं भी जुड़ गई है ((बाध्यकारी नहीं है )
      • वह उस राज्य से संबंधित न हो जहां उसे नियुक्त किया गया है ताकि वह स्थानीय राजनीति से मुक्त रह सके। 
      • दूसरा, जब राज्यपाल की नियुक्ति हो तब राष्ट्रपति के लिए आवश्यक हो कि वह राज्य के मामले में मुख्यमंत्री से परामर्श करे । 

राज्यपाल के पद की शर्ते 

  • उसे संसद का सदस्य नहीं होना चाहिए और विधानमंडल का भी सदस्य  नहीं होना चाहिए 
    • यदि ऐसा कोई व्यक्ति राज्यपाल नियुक्त किया जाता है तो उसे सदन से उस तिथि से अपना पद छोड़ना होगा, जब से उसने राज्यपाल का पद ग्रहण किया
  • उसे किसी लाभ के पद पर नहीं होना चाहिए। 
  • बिना किसी किराये के उसे राजभवन उपलब्ध होगा। 
  • यदि एक ही व्यक्ति दो या अधिक राज्यों में बतौर राज्यपाल नियुक्त होता है तो ये उपलब्धियां और भत्ते राष्ट्रपति द्वारा तय मानकों के हिसाब से दोनों राज्य मिलकर प्रदान करेंगे। 

राज्यपाल का वेतन  

महत्वपूर्ण अधिकारियों का मासिक वेतन

राष्ट्रपति

5 lakh

उपराष्ट्रपति

4 lakh

लोकसभा अध्यक्ष

4 lakh

राज्यपाल

3.5 lakh

सर्वोच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश

2,80,000

सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश

2,50,000

उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश

2,50,000

उच्च न्यायालय के अन्य न्यायाधीश

2,25,000

नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक

2,50,000

मुख्य चुनाव आयुक्त

2,50,000

महान्यायवादी

2,50,000

  • अपने कार्यकाल के दौरान 
    • उसे आपराधिक कार्यवाही (चाहे वह व्यक्तिगत क्रियाकलाप हो) की सुनवाई से उन्मुक्ति प्राप्त है।  
    • उसे गिरफ्तार कर कारावास में नहीं डाला जा सकता है। 
    • दो महीने के नोटिस परव्यक्तिगत क्रियाकलापों पर उनके विरुद्ध नागरिक कानून संबंधी कार्यवाही प्रारंभ की जा सकती है। 

राज्यपाल की शपथ 

  • राज्यपाल को  शपथ राज्य के उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश दिलवाते हैं। उनकी अनुपस्थिति में उपलब्धवरिष्ठतम न्यायाधीश शपथ दिलवाते हैं।

राज्यपाल की पदावधि –पांच वर्ष 

  • वह त्यागपत्र -राष्ट्रपति को दे सकता है।

स्थानांतरन 

  • राष्ट्रपति, एक राज्यपाल को उसके बचे हुए कार्यकाल के लिए किसी दूसरे राज्य में स्थानांतरित कर सकते हैं। इसी तरह एक राज्यपाल, जिसका कार्यकाल पूरा हो चुका है, को भी उसी राज्य या अन्य राज्य में दोबारा नियुक्त किया जा सकता है।
  • एक राज्यपाल पांच वर्ष के अपने कार्यकाल के बाद भी तब तक पद पर बना रह सकता है जब तक कि उसका उत्तराधिकारी कार्य ग्रहण न कर ले। 

राज्यपाल का निधन 

  • अकस्मात कोई घटना हो रही है, जिसका संविधान में उल्लेख नहीं है तो राष्ट्रपति , राज्यपाल के कार्यों के निर्वहन के लिए उपबंध बना सकता है

यथा-वर्तमान राज्यपाल का निधन  

  • राज्यपाल का निधन पर संबंधित राज्य के उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायधीश को अस्थायी तौर पर राज्यपाल का कार्यभार सौंपा जा सकता है।

राज्यपाल की शक्तियां एवं कार्य 

राज्यपाल को राष्ट्रपति के अनुरूप शक्तियां प्राप्त होती हैं। लेकिन राज्यपाल को राष्ट्रपति के समान कूटनीतिक, सैन्य या आपातकालीन शक्तियां प्राप्त नहीं होतीं। 

  • राज्यपाल की शक्तियों और उसके कार्यों को हम निम्नलिखित शीषर्कों के अंतर्गत समझ सकते हैं
    • 1. कार्यकारी शक्तियां
    • 2. विधायी शक्तियां
    • 3. वित्तीय शक्तियां
    • 4. न्यायिक शक्तियां
    • कार्यकारी शक्तियां 

राज्यपाल की कार्यकारी शक्तियां इस प्रकार हैं

  1. राज्य सरकार के सभी कार्यकारी कार्य राज्यपाल के नाम पर होते हैं। 
  2. वह मुख्यमंत्री एवं अन्य मंत्रियों को नियुक्त करता है। 
  3. छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, झारखंड तथा ओडिशा में राज्यपाल द्वारा नियुक्त जनजाति कल्याण मंत्री होगा। 
  4. वह राज्य के महाधिवक्ता को नियुक्त करता है । 
  5. वह राज्य निर्वाचन आयुक्त को नियुक्त करता है,लेकिन राज्य निर्वाचन आयुक्त को उसी तरह हटाया जा सकता है जैसे उच्च न्यायालय के न्यायाधीश को। 
  6.  वह राज्य लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष और सदस्यों को नियुक्त करता है। 
    • उन्हें सिर्फ राष्ट्रपति ही हटा सकता है, न कि राज्यपाल। 
  7. वह राष्ट्रपति से राज्य में संवैधानिक आपातकाल के लिए सिफारिश कर सकता है। 
  8.  वह राज्य के विश्वविघालयों का कुलाधिपति होता है,वह राज्य के विश्वविघालयों के कुलपतियों की नियुक्ति करता है।

विधायी शक्तियां 

  • वह राज्य विधान सभा के सत्र को आहूत या सत्रावसान और विघटितकर सकता है। 
  • वह विधानमंडल के प्रत्येक चुनाव के पश्चात पहले और प्रतिवर्ष के पहले सत्र को संबोधित कर सकता है। 
  • जब विधानसभा अध्यक्ष और उपाध्यक्ष का पद खाली हो तो वह विधानसभा के किसी सदस्य को कार्यवाही सुनिश्चित करने के लिए नियुक्त कर सकता है। 
  • राज्यविधानपरिषद के कुल सदस्यों के छठे भाग को वह नामित कर सकता है
    • जिन्हें साहित्य, विज्ञान, कला, सहकारिता आंदोलन और समाज सेवा का ज्ञान हो । 
  • वह राज्य विधानसभा के लिए एक आंग्ल-भारतीय समुदाय से एक सदस्य की नियुक्ति कर सकता है। 
    • इसे संविधान का 104वां संसोधन द्वारा समाप्त किया गया। 
  •  विधानसभा सदस्य की निरर्हता के मुद्दे पर निर्वाचन आयोग से विमर्श करने के बाद वह इसका निर्णय करता है। 
  • राज्य विधानमंडल द्वारा पारित किसी विधेयक को राज्यपाल के पास भेजे जाने पर : 
    • वह विधेयक को स्वीकार कर सकता है, 
    • स्वीकृति के लिए उसे रोक सकता है, 
    •  विधेयक को (यदि यह धन-संबंधी विधेयक न विधानमंडल के पास पुनर्विचार के लिए वापस कर सकता है।  
      • हालांकि राज्य विधानमंडल द्वारा पुनः बिना परिवर्तन के विधेयक को पास कर दिया जाता है तो राज्यपाल को अपनी स्वीकृति देनी होती है, या 
    • विधेयक को राष्ट्रपति के विचार के लिए सुरक्षित रख सकता है।  
      • एक ऐसे मामले में इसे सुरक्षित रखना अनिवार्य है, जहां राज्य विधानमंडल द्वारा पारित विधेयक उच्च न्यायालय की स्थिति को खतरे में डालता है।  
  • जब राज्य विधानमंडल का सत्र न चल रहा हो तो वह औपचारिक रूप से अध्यादेश की घोषणा कर सकता है। 
    • इन विधेयकों की राज्य विधानमंडल से छह हफ्तों के भीतर स्वीकृति होनी आवश्यक है। 
    •  वह किसी भी समय किसी अध्यादेश को समाप्त भी कर सकता है, यह राज्यपाल का सबसे महत्वपूर्ण अधिकार है। 
  • वह राज्य के लेखों से संबंधित राज्य वित्त आयोग, राज्य लोक सेवा आयोग और नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक कीरिपोर्ट को राज्य विधानसभा के सामने प्रस्तुत करता है।

वित्तीय शक्तियां 

राज्यपाल की वित्तीय शक्तियां इस प्रकार हैं

  1. वह सुनिश्चित करता है कि वार्षिक वित्तीय विवरण(राज्य-बजट) को राज्य विधानमंडल के सामने रखा जाए। 
  2. धन विधेयकों को राज्य विधानसभा में उसकी पूर्व सहमति के बाद ही प्रस्तुत किया जा सकता है। 
  3. बिना उसकी सहमति के किसी तरह के अनुदान क मांग नहीं की जा सकतीं। 
  4. वह किसी अप्रत्याशित व्यय के वहन के लिए आकस्मिकता निधि से अग्रिम ले सकता है। 
  5. पंचायतों एवं नगरपालिका की वित्तीय स्थिति की 5 वर्ष बाद समीक्षा के लिए वह वित्त आयोग का गठन करता हैं 

न्यायिक शक्तियां 

  1. राज्य के राज्यपाल को राज्य की  विधि के विरूद्ध किसी अपराध के लिए सिद्धदोष ठहराए गए किसी व्यक्ति के दण्ड को क्षमा, उसका प्रविलंबन, विराम या परिहार करने की अथवा दंडादेश के निलंबत, परिहार या लघुकरण की शक्ति होगी। 
  2. राष्ट्रपति के द्वारा द्वारा संबंधित राज्य के उच्च न्यायालय के न्यायाधीश की नियुक्ति के मामले में राज्यपाल से परामर्श किया जाता है। 
  3. राज्यपाल ,राज्य उच्च न्यायालय के साथ विचार कर जिला न्यायाधीशों की नियुक्ति, स्थानांतरण और प्रोन्नति कर सकता है।
  4. वह राज्य न्यायिक आयोग से जुड़े लोगों की नियुक्ति भी करता है (जिला न्यायाधीशों के अतिरिक्त) 
    • इन नियुक्तियों में वह राज्य उच्च न्यायालय और राज्य लोक सेवा आयोग से विचार करता है। 

राज्यपाल की संवैधानिक स्थिति 

  1. राज्य की कार्यकारी शक्तियां राज्यपाल में निहित होंगी। ये संविधान सम्मत कार्य सीधे उसके द्वारा या उसके अधीनस्थ अधिकारियों द्वारा संपन्न होंगे (अनुच्छेद 154)। 
  2. अपने विवेकाधिकार वाले कार्यों के अलावा (अनुच्छेद 163) अपने अन्य कार्यों को करने के लिए राज्यपाल को मुख्यमंत्री के नेतृत्व वाली मंत्रिपरिषद से सलाह लेनी होगी। 
  3. राज्य मंत्रिपरिषद की विधानमंडल के प्रति सामूहिक जिम्मेदारी होगी (अनुच्छेद 164)। 
  4. राज्यपाल अपने विवेक के आधार पर कुछ स्थितियों में काम करे, जबकि राष्ट्रपति के अपने विवेक के आधार पर कुछ स्थितियों में काम करे ऐसी कल्पना नहीं की गई। 
  5. 42वें संविधान संशोधन (1976) के बाद राष्ट्रपति के लिए मंत्रियों की सलाह की बाध्यता तय कर दी गई जबकि राज्यपाल के संबंध में पर इस तरह का कोई उपबंध नहीं है। 

राज्यपाल के विवेकाधिकार का निर्णय 

  • यदि राज्यपाल के विवेकाधिकार पर कोई प्रश्न उठे तो राज्यपाल का निर्णय अंतिम वैध होगा, 
  • राज्यपाल के निर्णय पर प्रश्न नहीं उठाया जा सकता कि उसे विवेकानुसार निर्णय लेने का अधिकार था या नहीं। 

राज्यपाल के संवैधानिक विवेकाधिकार निम्नलिखित मामलों में है

  • राष्ट्रपति के विचारार्थ किसी विधेयक को आरक्षित करना। 
  • राज्य में राष्ट्रपति शासन की सिफारिश करना। 
  • पड़ोसी केंद्रशासित राज्य में (अतिरिक्त प्रभार की स्थिति में) बतौर प्रशासक के रूप में कार्य करते समय। 
  • असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिजोरम के राज्यपाल द्वारा खनिज उत्खनन की रॉयल्टी के रूप में जनजातीय जिला परिषद को देय राशि का निर्धारण।’ 
  • राज्य के विधानपरिषद एवं प्रशासनिक मामलों में मुख्यमंत्री से जानकारी प्राप्त करना। 
  • विधानसभा चुनाव में किसी भी दल को पूर्ण बहुमत न मिलने की स्थिति में या कार्यकाल के दौरान अचानक मुख्यमंत्री का निधन हो जाने एवं उसके निश्चित उत्तराधिकारी न होने पर मुख्यमंत्री की नियुक्ति के मामले में। 
  • राज्य विधानसभा में विश्वास मत हासिल न करने पर मंत्रिपरिषद की बर्खास्तगी के मामले में। 
  • मंत्रिपरिषद के अल्पमत में आने पर राज्य विधानसभा को विघटित करना
  • महाराष्ट्र-विदर्भ एवं मराठवाडा के लिए पृथक विकार बोर्ड की स्थापना। 
  • गुजरात-सौराष्ट्र और कच्छ के लिए पृथक विकास बोड की स्थापना
  • नागालैंड-त्वेनसांग नागा पहाड़ियों पर आंतरिक विघ्नों के चलते कानून एवं व्यवस्था के संबंध में। 
  • असम-जनजातीय इलाकों में प्रशासनिक व्यवस्था। 
  • मणिपुर-राज्य के पहाड़ी इलाकों में प्रशासनिक व्यवस्था। 
  • सिक्किम-राज्य की जनता के विभिन्न वर्गों के बीच सामाजिक और आर्थिक विकास के साथ शांति सुनिश्चित करना।
  • अरुणाचल प्रदेश-राज्य में कानून एवं व्यवस्था बनाना। 
  • कर्नाटक-हैदराबाद-कर्नाटक क्षेत्र के लिए एक अलग विकास बोर्ड की स्थापना।

राज्यपाल से संबंधित अनुच्छेद, एक नजर में

अनुच्छेद 

विषय-वस्तु

153 

राज्यों के राज्यपाल 

154 

राज्य की कार्यपालक शक्ति 

155

राज्यपाल की नियुक्ति 

156

राज्यपाल का कार्यकाल 

157 

राज्यपाल के नियुक्त होने के लिए अर्हता 

158

राज्यपाल कार्यालय के लिए दशाएँ

159 

राज्यपाल द्वारा शपथ ग्रहण 

160

कतिपय आकस्मिक परिस्थितियों में राज्यपाल के कार्य

161

राज्यपाल को क्षमादान आदि की शक्ति

162

राज्य की कार्यपालक शक्ति की सीमा

163

मंत्रीपरिषद का राज्यपाल को सहयोग तथा सलाह देना 

164

मंत्रियों से संबंधित अन्य प्रावधान जैसे-नियुक्ति, कार्यकाल तथा वेतन इत्यादि 

165

राज्य का महाधिवक्ता

166

राज्य की सरकार द्वारा संचालित कार्यवाही 

167

राज्यपाल को सूचना देने इत्यादि का मुख्यमंत्री का दायित्व

174

राज्य विधायिका का सत्र, सत्रावसान तथा उसका भंग होना 

175

राज्यपाल का राज्य विधायिका के किसी अथवा दोनों सदनों को संबोधित करने अथवा संदेश देने का अधिकार 

176

राज्यपाल द्वारा विशेष संबोधन 

200

विधेयक पर सहमति (राज्यपाल द्वारा राज्य विधायिका द्वारा पारित विधेयकों पर स्वीकृति प्रदान करना)

201

राज्यपाल द्वारा विधेयक को राष्ट्रपति के विचारार्थ सुरक्षित रख लेना

213

राज्यपाल की अध्यादेश जारी करने की शक्ति

217

राज्यपाल की उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति के मामले में राष्ट्रपति द्वारा सलाह लेना

233

राज्यपाल द्वारा जिला न्यायाधीशों की नियुक्ति

234 

राज्यपाल द्वारा न्यायिक सेवा के लिए नियुक्ति (जिला न्यायाधीशों को छोड़कर)

सामान्य विधेयकों से संबंधित 

राष्ट्रपति

राज्यपाल

प्रत्येक साधारण विधेयक जब राष्ट्रपति के पास मंजूरी के लिए भेजा जाता है। इस मामले में उसके पास तीन विकल्प हैं

  • वह विधेयक को स्वीकृति दे सकता है । 

  • वह विधेयक को स्वीकृति न दे रोक सकता है 

  • वह विधेयक को पुनर्विचार हेतु संसद को भेज सकता है 

संसद द्वारा पुनर्विचार के बाद 

  • यदि विधेयक को बिना किसी परिवर्तन के फिर से दोनों सदनों द्वारा पारित कराकर राष्ट्रपति की स्वीकृति के लिए भेजा जाए तो राष्ट्रपति को उसे स्वीकृति अवश्य देनी होती है। इस तरह राष्ट्रपति के पास केवल स्थगन वीटो का अधिकार है

राज्यपाल द्वारा राष्ट्रपति के विचारार्थ विधेयक

जब कोई विधेयक राज्यपाल द्वारा राष्ट्रपति के विचारार्थ सुरक्षित रखा जाता है तो राष्ट्रपति के पास तीन विकल्प होते हैं

  • वह स्वीकृति दे सकता है  

  • वह विधेयक को स्वीकृति न दे रोक सकता है 

  • वह विधानमंडल  को पुनर्विचार के लिए भेज सकता है। 

    • सदन द्वारा छह महीने के भीतर इस पर पुनर्विचार करना आवश्यक है। 

    • यदि विधेयक को कुछ सुधार या बिना सुधार के राष्ट्रपति की स्वीकृति के लिए दोबारा भेजा जाए तो राष्ट्रपति इसे देने के लिए बाध्य नहीं है; वह स्वीकृत कर भी सकता है और नहीं भी।

सामान्य विधेयकों को पारित कर इसे राज्यपाल के सम्मुख प्रस्तुत किया जाएगा। राज्यपाल के पास चार विकल्प हैं

  • वह विधेयक को स्वीकृति दे सकता है । 

  • वह विधेयक को स्वीकृति न दे रोक सकता है 

  • वह विधेयक को पुनर्विचार हेतु विधानमंडल को भेज सकता है 

विधानमंडल द्वारा पुनर्विचार के बाद 

  • यदि विधेयक को बिना किसी परिवर्तन के फिर से दोनों सदनों द्वारा पारित कराकर राज्यपाल की स्वीकृति के लिए भेजा जाए तो राज्यपाल को उसे स्वीकृति अवश्य देनी होती है। इस तरह राज्यपाल के पास केवल स्थगन वीटो का अधिकार है।

 4. वह विधेयक को राष्ट्रपति के विचारार्थ के लिए सुरक्षित रख सकता है। 

धन विधेयकों से संबंधित

  • धन विधेयक उसकी पूर्व अनुमति से प्रस्तुत किया गया होता है। 

  • धन विधेयकउसकी पूर्व अनुमति से प्रस्तुत किया गया होता है। 

  • संसद द्वारा पारित प्रत्येक वित्त विधेयक को जब राष्ट्रपति के पास स्वीकृति के लिए भेजा जाता है तो उसके पास दो विकल्प होते हैं

1. वह विधेयक को स्वीकृति दे सकता है 

2. वह स्वीकृति न दे तब विधेयक समाप्त हो जाएगा और अधिनियम नहीं बन पाएगा।

  • राष्ट्रपति धन विधेयक को संसद को पुनर्विचार के लिए वापस नहीं लौटा सकता। 

कोई भी वित्त विधेयक जब राज्य विधानमंडल द्वारा पारित कर राज्यपाल के पास स्वीकृति के लिए भेजा जाता है तो उसके पास तीन विकल्प होते हैं

1. वह विधेयक को स्वीकृति दे सकता है

2. वह विधेयक को स्वीकृति न दे रोक सकता है जिससे विधेयक समाप्त हो जाता है और अधिनियम नहीं पाता है।

3. वह विधेयक को राष्ट्रपति के विचारार्थ सुरक्षित रख सकता है। 

  • राज्यपाल वित्त विधेयक को पुनर्विचार के लिए राज्य विधान सभा को वापस नहीं कर सकता। 

जब किसी राज्यपाल द्वारा वित्त विधेयक राष्ट्रपति को विचारार्थ भेजा जाता है तो राष्ट्रपति के पास दो विकल्प होते हैं

  • वह विधेयक को अपनी स्वीकृति दे सकता है

  • वह उसे अपनी स्वीकृति न दे ,रोक  सकता है। तब विधेयक खत्म हो जाएगा और अधिनियम नहीं बन पाएगा। 

    • इस प्रकार राष्ट्रपति वित्त विधेयक को राज्य विधान सभा के पास पुनर्विचार के लिए नहीं भेज सकता 

जब किसी राज्यपाल द्वारा वित्त विधेयक राष्ट्रपति को विचारार्थ भेजा जाता है तो राष्ट्रपति के पास दो विकल्प होते हैं

  • वह विधेयक को अपनी स्वीकृति दे सकता है

  • वह उसे अपनी स्वीकृति न दे ,रोक  सकता है। तब विधेयक खत्म हो जाएगा और अधिनियम नहीं बन पाएगा। 

    • इस प्रकार राष्ट्रपति वित्त विधेयक को राज्य विधान सभा के पास पुनर्विचार के लिए नहीं भेज सकता 

अध्यादेश निर्माण में राष्ट्रपति एवं राज्यपाल के के अधिकारों की तुलना

राष्ट्रपति

राज्यपाल

अनुच्छेद -123 

अनुच्छेद -213 

1. वह किसी अध्यादेश को केवल तभी जारी कर सकता है जब संसद के सदन सत्र में न हो। 

1. वह किसी अध्यादेश को तभी जारी कर सकता है, जब विधानमंडल सत्र में न हो

2. वह उन्हीं विषयों अध्यादेश जारी करता है, जिनके संबंध में संसद विधि बनाती है।

2. वह उन्हीं विषयों अध्यादेश जारी करता है, जिनके संबंध में विधान मंडल विधि बनाती है।

3.उसके द्वारा जारी अध्यादेश अवैध हो सकता है, यदि वह संसद द्वारा बना सकने योग्य न हो। 

3.उसके द्वारा जारी अध्यादेश यदि विधानमंडल द्वारा पारित करने की सीमा में नहीं होगा तो वह अवैध हो जाएगा। 

4.वह एक अध्यादेश को किसी भी समय वापस ले  सकता है। 

4.वह एक अध्यादेश को किसी भी समय वापस ले  सकता है। 

5.उसकी अध्यादेश निर्माण की शक्ति स्वैच्छिक नहीं है, 

  • इसका मतलब वह कोई विधि बनाने या किसी अध्यादेश को वापस लेने का काम केवल प्रधानमंत्री के नेतृत्व वाली मंत्रिपरिषद के परामर्श पर ही कर सकता है। 

5.उसकी अध्यादेश निर्माण की शांति स्वैच्छिक नहीं है। 

  • इसका मतलब वह कोई विधि बनाने या किसी अध्यादेश को वापस लेने का काम केवल मुख्यमंत्री के नेतृत्व वाला मंत्रिपरिषद की सलाह पर ही कर सकता है।

6.उसके द्वारा जारी अध्यादेश संसद का सत्र प्रारंभ होने के छह माह उपरांत समाप्त हो जाता है। 

  • यह इससे पहले भी भी समाप्त हो जाता है, जब संसद के दोनों सदन इसे अस्वीकृत करने का संकल्प पारित करे।

6.उसके द्वारा जारी अध्यादेश राज्य विधानमण्डल का सत्र प्रारंभ होने के छह सप्ताह उपरांत समाप्त हो जाता है। 

  • यह इससे पहले भी समाप्त हो सकता है, यदि विधान मंडल इसे अस्वीकृत करे । 

7.उसे अध्यादेश बनाने में किसी निर्देश की आवश्यकता नहीं होती।

7.उसे निम्न तीन मामलों में अध्यादेश बनाने में राष्ट्रपति से निर्देश लेना आवश्यक है 

यदि

(अ) राज्य विधानमंडल में इसकी प्रस्तुति के लिए राष्ट्रपति की पूर्व स्वीकृति आवश्यक हो, 

(ब) यदि वह समान उपबंधों वाले विधेयक को राष्ट्रपति के विचारार्थ आवश्यक माने। 

(स) यदि राज्य विधानमंडल का अधिनियम ऐसा हो कि राष्ट्रपति की स्वीकृति के बिना यह अवैध हो जाए।

  • दंड को क्षमा(pardon) – पूरी तरह खत्म 

  • लघुकरण(commutation) – दंड का रूप बदल कम करना (मृत्युदंड → कारावास )

  • परिहार(remission)दंड का रूप बदले बिना कम करना( 2  वर्ष कारावास →1 वर्ष कारावास )

  • विराम(respite)  –दंड को विशेष परिस्तिथिति में कम करना(अपंगता ,गर्भावस्था )

  • प्रविलम्बन(reprieve) – अस्थायी रोक ( मृत्युदंड )

क्षमादान के मामले में राष्ट्रपति एवं राज्यपाल की तुलनात्मक शक्तियां

राष्ट्रपति

राज्यपाल

1. वह केन्द्रीय विधि के विरूद्ध किसी अपराध के लिए दोष सिद्ध ठहराए गए किसी व्यक्ति के 

  • दंड को क्षमा 

  • लघुकरण 

  • विराम  

  • परिहार 

  • प्रविलम्बन 

कर सकता है। 

1. वह राज्य विधि के तहत किसी अपराध के लिए दोष सिद्ध ठहराए गए

  • दंड को क्षमा 

  • लघुकरण 

  • विराम  

  • परिहार 

  • प्रविलम्बन

     कर सकता है। (अनुछेद -161 )

2. वह मृत्युदंड की सजा को

  • माफ/क्षमा कर सकता है, 

  • कम कर सकता है या 

  • स्थगित कर सकता है 

  • बदल सकता है । 

एकमात्र  राष्ट्रपति ही यह अधिकार है कि वह मृत्युदंड की सजा को माफ कर दे।

2. वह मृत्युदंड की सजा को माफ नहीं कर सकता, चाहे किसी को राज्य विधि के तहत मौत की सजा मिली भी हो, तो भी उसे राज्यपाल की बजाए राष्ट्रपति से क्षमा की याचना करनी होगी। लेकिन राज्यपाल इसे 

  • माफ/क्षमा नहींकर सकता

  • कम नहीं कर सकता है

  • स्थगित कर सकता है 

  • बदल नहीं सकता है । 

  • पुनर्विचार के लिए कह सकता है। 

3. वह कोर्ट मार्शल (सैन्य अदालत) के तहत सजा प्राप्त व्यक्ति की 

  • सजा माफ कर सकता है, 

  • कम कर सकता है  

  • बदल सकता है।

3. उसे इस प्रकार की कोई शक्ति प्राप्त नहीं है।

राज्यपाल