वाद्य-यंत्रों का वर्गीकरण 

  1. तंतु वाद्यतारों में कंपन द्वारा बजाए जाने वाले वाद्य
  2. सुषिर वाद्यफूंककर बजाए जाने वाले वाद्य
  3. ताल वाद्यठोककर बजाए जाने वाले वाद्य
    1. अवनद्ध वाद्यलकड़ी के ढांचे पर चमड़ा मढ़कर निर्मित वाद्य
    2. घन वाद्यकांसा से निर्मित वाद्य

 

तंतु वाद्य

तारों में कंपन

सुषिर वाद्य

फूंककर

ताल वाद्य (ठोककर)

अवनद्ध वाद्य

ढांचे पर चमड़ा मढ़कर

घन वाद्य

कांसा से निर्मित

  • एकतारा 
  • केंदरा
  • भुआंग 
  • बनम
  • टोहिला
  • सारंगी 
  • बाँसुरी 
  • शहनाई 
  • सिंगा
  • मुरली
  • मदनभेरी
  • मांदर 
  • ढोल
  • नगाड़ा
  • ढाक
  • धमसा 
  • डमरू 
  • कामरा 
  • ढप 
  • खजरी 
  • जुड़ी
  • करताल
  • झांझ
  • घंटा
  • काठ 
  • खाला

 

1. तंतु वाद्य

  • ऐसे वाद्य, जिनमें तांत, रेशम की डोरी या तार बंधे होते हैं तथा इनमें कंपन के माध्यम से ध्वनि उत्पन्न की जाती है। 
  • इसके तार को अंगुली या धातु के टुकड़े से छेड़कर ध्वनि निकाली जाती है।

जैसे- एकतारा, केंदरा, भुआंग, बनम, टोहिला, सारंगी आदि।

एकतारा

  • यह एक तार से बना हुआ वाद्य यंत्र है। 
  • इसे लौकी के आधे कटे खोल के ऊपर चमड़ा मढ़कर बनाया जाता है। 

केंदरा/ केंदरी

  • इसका निर्माण खोखले बाँस की छड़ी पर सूखे लौके का खोल बाँध कर किया जाता है। इसका निचला हिस्सा कछुए की खाल या नारियल के खोल का बना होता है। 
  • इसे झारखण्ड का वायलिन भी कहा जाता है।
  • केंदरा संथालों का प्रमुख वाद्य है।

भुआंग

  • यह संथालों का प्रमुख वाद्य-यंत्र है।
  • इसके निर्माण में लौकी का प्रयोग किया जाता है।
  • इससे धनुष टंकार जैसी ध्वनि ‘बुअंग’ निकलती है। इससे एक ही प्रकार का स्वर निकलता है। 

बनम

  • इसका प्रयोग संथाल जनजाति द्वारा किया जाता है। 
  • इसका निर्माण नारियल को काटकर उस पर गोह का चमड़ा लगाकर किया जाता है।
  • यह वायलिन के समान होता है। 

टोहिला

  • इसे बनाने हेतु सूखी लौकी तथा खोखली लाठी का प्रयोग किया जाता है।

 

2. सुषिर वाद्य – ऐसे वाद्य जिसे फूंककर बजाया जाता है, उसे सुषिर वाद्य कहते हैं। 

जैसे- बाँसुरी, शहनाई, सिंगा, मुरली, मदनभेरी आदि।

बाँसुरी

  • यह झारखण्ड का सर्वाधिक लोकप्रिय वाद्य है।
  • इसका निर्माण बांस से किया जाता है तथा डोंगी नामक बांस से बहुत अच्छी बाँसुरी बजाई जाती है। 

 

शहनाई

          

 

  • इसे सनाई भी कहा जाता है। 
  • इसका प्रयोग छऊ, पईका तथा नटुआ नृत्य में प्रमुखता से किया जाता है। 
  • यह झारखण्ड के जनजातीय समुदाय का मंगल वाद्य है। 

 

 

सिंगा

  • निर्माण बैल या भैंस के सींग से किया जाता है।
  • इसका प्रयोग छऊ नृत्य के समय तथा पशुओं के शिकार के समय किया जाता है।

मदनभेरी

  • इसका वादन ढोल, बाँसुरी, शहनाई आदि के साथ सहायक वाद्य के रूप में किया जाता है।
  • इसका निर्माण लकड़ी की नली के अग्रभाग में पीतल की नली जोड़कर किया जाता है।

 

3. ताल वाद्य – ऐसे वाद्य जिन्हें पीटकर बजाया जाता है, ताल वाद्य कहलाते है। ये दो प्रकार के होते हैं

(a) अनवद्ध वाद्य – ये वाद्य लकड़ी के ढांचे पर चमड़ा मढ़कर निर्मित किए जाते हैं। जैसे – मांदर, ढोल, नगाड़ा, ढाक, धमसा, डमरू, कामरा, ढप, खजरी, जुड़ी आदि। 

(b) घन वाद्य – ये वाद्य कांसा से निर्मित किए जाते हैं। इसे सहायक ताल वाद्य भी कहा जाता है जैसे – करताल, झांझ, घंटा, काठ, खाला आदि। 

मांदर

  • इसे तुमदक भी कहा जाता है।
  • इसका निर्माण मिट्टी या लकड़ी के गोलाकार खोल के खुले सिरों के दोनों ओर बकरी का चमड़ा मढ़कर  किया जाता है। 
  • इसका बांया मुंह चौड़ा तथा दाहिना मुंह छोटा होता है। 
  • इसके छोटे मुंह वाले खाल पर एक विशेष लेप (किरण) लगाया जाता है। 

ढोल

  • इसका निर्माण, कटहल, आम तथा गम्हार की लकड़ी के खोल से किया जाता है। 
  • इसके मुंह को बकरी के खाल से मढ़कर तैयार किया जाता है। 

 

नगाड़ा

  • संथाल परगना में नगाड़ा को टामाक के नाम से जाना जाता है। 
  • इसका निर्माण कटहल की पेड़ के गुंबदाकार खोल के सिरों पर भैंस या बकरी का चमड़ा मढ़कर किया जाता है। 

 

ढाक

 

  • आकार में यह ढोल तथा मांदर से बड़ा होता है। 
  • इसका निर्माण गम्हार की लकड़ी के सिरों को बकरी की खाल से मढ़कर किया जाता है।
  • इसे कंधे पर लटकाकर लकड़ी से बजाया जाता है।

 

धमसा /कुडुधतु 

  • इसका वादन ढोल, मांदर आदि के सहायक वाद्य के रूप में किया जाता है। 
  • छऊ नृत्य के दौरान युद्ध और सैनिक-प्रयाण जैसे दृश्यों को साकार करने हेतु इसे बजाया जाता है। 
  • इसकी आकृति कड़ाही जैसी होती है। 

 

करताल

  • यह दो चपटे गोलाकार प्याले के जोड़े में होता है, जिनके बीच का हिस्सा ऊपर की ओर उभरा होता है। 
  • इनके उभरे हिस्से के बीच एक छेद होता है जिसमें रस्सी पिरो दी जाती है। 
  • इसमें रस्सियों को हाथों की उंगलियों में फंसाकर प्यालों को ताली की भांति बजाया जात है, जिससे मीठी ध्वनि निकलती है।

 

झांझ

  • इसका आकार करताल की ही भांति परंतु इससे बड़ा होता है।
  •  इसकी आवाज करताल से अधिक होती है। 

थाला

 

  • यह कांसे की थाली की भांति होता है जिसका गोलाकार किनारा ऊपर की ओर उभरा होता है। 
  • इसके बीच मे एक छेद में रस्सी पिरोकर इसे झुलाया जाता है। 
  • इसकी रस्सी को एक हाथ से थामकर दूसरे हाथ से मक्के की खलरी से बजाया जाता है। 

 

काठी

  • यह कुड़ची की लकड़ी के दो टुकड़ों का जोड़ा है जिसे आपस में टकराने पर मधुर ध्वनि उत्पन्न होती है।
झारखण्ड के प्रमुख वाद्य-यंत्र